Mahajanapadas

भारत में महाजनपद काल (Mahajanapadas in India)

इस लेख में हम 16 माहाजनपद काल तथा उसके राजाओं (16 mahajanapadas and their kings) के बारे में बताया गया है।
यह महाजनपद काल संघ लोक सेवा आयोग (mahajanapadas upsc) तथा राज्य लोग सेवा आयोग की आगामी परीक्षाओं के लिए उपयोगी होगा।

महाजनपद क्या है (what is mahajanapadas) ?

इस लेख में 16 mahajanapadas list (16 महाजनपद काल की सूचि) उपलब्ध कराई गई है। उनके नाम (16 mahajanapadas name) इस प्रकार है
16 mahajanapadas का भारतीय इतिहास में विशेष स्थान है।

यह 16 mahajanapadas upsc (16 महाजनपद लोक सेवा आयोग आयोग) की आगामी परीक्षा हेतु उपयोगी है।

 

16 महाजनपद की सूची (6 mahajanapadas list)

नीचे 16 महाजनपद (16 Mahajanapadas) की सूची दी हुई है। जो नीचे दी गई है। इसमें Magadh mahajanapada (मगध महाजनपद) जैसे साम्राज्यों का नाम शामिल है।

  • Kasi (कासी)
  • Kosala (कोसला)
  • Anga (अंग)
  • Magadha (मगध)
  • Vajji (वज्जि)
  • Malla (मल्ला)
  • Chedi (चेदि)
  • Vatsa (वत्स)
  • Kuru (कुरु)
  • Panchala (पांचाल)
  • Matsya (मत्स)
  • Surasena (सुरसेना)
  • Assaka (अस्साका)
  • Avanti (अवन्ति)
  • Gandhara (गांधार)
  • Kamboja (कम्बोज)

इस लेख में 16 mahajanapadas map (16 महाजनपद नक़्शे) को उपलब्ध कराया गया है।

16 महाजनपद (16 mahajanapadas)  को नक़्शे के माध्यम से समझना आसान होगा।

16 mahajanapadas map
16 Mahajanapadas Map

 


छत्तीसगढ़ में माहाजनपद काल

  • व्हेनसांग ने 639 ई० के आसपास छत्तीसगढ़ की यात्रा की थी। उनके किताब सी.यु.की. के अनुसार गौतम बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद छ.ग. की राजधानी श्रावस्ती में आये थे और तीन माह निवासरत थे
  • गौतम बुद्ध के दक्षिण यात्रा की जानकारी हमें “अवदान शतक नामक ग्रन्थ” से मिलता है।
  • छ.ग. चेदी महाजनपद का हिस्सा था, इसी कारन इसे चीदिसगढ़ कहा जाता था।
  • बौद्ध धर्म से सम्बंधित स्थान – सिरपुर, तुरतुरिया, तुम्मण, खल्लारी, बस्तर के भोगापाल आदि में मिलते है।

मौर्यकाल 

  • छ.ग. में मौर्य काल के कुछ प्रमाण प्राप्त हुए है
  • छ.ग. के तोसली में मौर्यकालीन अशोक के अभिलेख मिले है
  • सरगुजा में जोगीमारा गुफा मौर्यकालीन है
  • सूरजपुर के रामगढ़ के सिताबोंगरा गुफा में विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला मिली है|
  • मौर्य कालीन सिक्के — रायगढ़ जिले के सारंगढ़,जांजगीर चाम्पा में अकलतरा, ठाठरी, रायपुर के तारापुर आदि जगहों पर मौर्यकालीन सिक्के मिले है
  • जोगीमारा गुफा – देवदासी सुतनुका (नृत्यांगना) एवं देवदत्त नामक नर्तक की प्रणय गाथा मिलती है, जो की पालीभाषा, और ब्राम्ही लिपि में है।

सातवाहन काल 

  • छ.ग. में सातवाहन काल ने लम्बे समय तक शासन किया ।
  • सातवाहन राजा अपीलक का एक मात्र मुद्रा जांजगीर जिले के बालपुर एवं बिलासपुर जिले के मल्हार से प्राप्त हुए है|
  • जांजगीर चाम्पा के किरारी नामक गाँव के तालाब में सातवाहन कालीन काष्ठ स्तम्भ मिला है,इसमें कर्मचारियों,अधिकारियो के पद व नाम है।
  • इस काल के शिलालेख जांजगीर.चाम्पा के दमाऊदरहा में मिले है, जिसकी भाषा प्राकृत है, इस शिलालेख में सातवाहन राजकुमार वरदत्त का उल्लेख मिलता है।

कुषाण काल 

  • इस वंश के प्रमुख शासक विक्रमादित्य व कनिष्क थे।
  • इस वंश के शासक कनिष्क के सिक्के रायगढ़ जिले के खरसिया के तेलिकोट गाँव से पुरातत्ववेत्ता डॉ. सी. के. साहू को मिले थे।
  • ताम्बे के सिक्के बिलासपुर के चकरबेड़ा से मिले है।

मेघ वंश 

  • गुप्तों के पहले मेघ वंश के शासकों ने राज्य किया ।
  • 200 ई.पू. से 400 ई.पू. तक शासन या अन्यत्र, परन्तु सिक्के मल्हार से प्राप्त ।

 

वकाटक वंश ( 3 – 5 वीं शताब्दी )

प्रवरसेन प्रथम 

  • छत्तीसगढ़ क्षेत्र में इस वंश का संस्थापक थे, इन्होंने ने समस्त दक्षिण कोसल को जीत लिया था।
  • इनकी राजधानी – नन्दिवर्धन ( नागपुर ) थी।

नरेंद्रसेन 

  • इसके द्वारा कोशल, मालवा, मैकल, पर विजय का उल्लेख हमें पृथ्वीसेन द्वितीय के बालाघाट ताम्रपत्र से मिलता है।
  • नल शासक भवदत्त वर्मा ने नरेन्द्रसेन की राजधानी नंदिवर्मन ( नागपुर ) पर आक्रमण कर उसे पराजित किया।

पृथ्वीसेन- II 

  • इसने नलवंशी भवदत्त के बेटे अर्थ पति भट्टारक को हराया था।
  • इसने पुष्करी भोपालपटनम को बर्बाद कर दिया था।

प्रवरसेन द्वितीय 

  • इनके शासन काल में प्रसिद्ध कवि कालिदास छत्तीसगढ़ आये थे।

 

महाजनपदों की राजनीतिक संरचना

अधिकांश राज्य राजशाही थे लेकिन कुछ गणतंत्र थे जिन्हें गण या संघ के नाम से जाना जाता था।

ये गणसंघ कुलीन वर्ग थे जहाँ राजा चुना जाता था और वह एक परिषद की मदद से शासन करता था।

वज्जी एक महत्वपूर्ण महाजनपद था जिसमें संघ की सरकार थी।

जैन और बौद्ध धर्म के संस्थापक गणतांत्रिक राज्यों से आए थे।

प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी थी।

उनमें से अधिकांश के पास अन्य राजाओं से सुरक्षा के लिए उनके चारों ओर किले बनाए गए थे।

इन नए राजाओं या राजाओं द्वारा नियमित सेनाओं का रखरखाव किया जाता था।

वे लोगों से कर भी वसूल करते थे। आमतौर पर फसलों पर कर उपज का 1/6 हिस्सा होता था। इसे भागा या शेयर के नाम से जाना जाता था।

यहां तक ​​कि कारीगरों, चरवाहों, शिकारियों और व्यापारियों पर भी कर लगाया जाता था।

 

कृषि में परिवर्तन

 

कृषि में दो बड़े परिवर्तन हुए:

लोहे के हल के फाल का उपयोग बढ़ रहा है।

इससे उत्पादन बढ़ा।

किसानों ने धान की रोपाई शुरू कर दी है।

इसका मतलब है कि मिट्टी पर बीज बिखेरने के बजाय, पौधे उगाए गए और खेतों में लगाए गए।

इससे उत्पादन तो बहुत बढ़ गया लेकिन काम भी कई गुना बढ़ गया।

छठी शताब्दी का महत्व

यह छठी शताब्दी ईसा पूर्व से है कि भारत का एक सतत राजनीतिक इतिहास कहा जा सकता है।

 

विलुप्ति

 

छठी/पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में वर्चस्व के लिए संघर्ष में, मगध का बढ़ता राज्य प्राचीन भारत में सबसे प्रमुख शक्ति के रूप में उभरा, जिसमें मज्जीमदेस के कई जनपद शामिल थे।

ब्राह्मण पुराणों में एक कड़वी पंक्ति शोक करती है कि मगध सम्राट महापद्म नंद ने सभी क्षत्रियों को नष्ट कर दिया, उसके बाद क्षत्रिय नाम के योग्य कोई भी नहीं छोड़ा गया।

यह स्पष्ट रूप से पूर्वी पंजाब के कासी, कोसल, कौरव, पांचाल, वात्स्य और अन्य नव-वैदिक जनजातियों को संदर्भित करता है, जिनके बारे में किंवदंती और कविता के अलावा कुछ भी नहीं सुना गया था।

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार, महाजनपदों में से पहले 14 मज्जिमदेसा (मध्य भारत) से संबंधित हैं, जबकि काम्बोजन और गंधार उत्तरापथ या जम्बूद्वीप के उत्तर-पश्चिम विभाजन से संबंधित हैं।

321 ईसा पूर्व में मौर्य साम्राज्य के उदय तक ये अंतिम दो मगध राज्य के सीधे संपर्क में नहीं आए।

वे अपेक्षाकृत अलग-थलग रहे लेकिन साइरस के शासनकाल (558-530 ईसा पूर्व) के दौरान या डेरियस के पहले वर्ष में फारस के एकेमेनिड्स द्वारा आक्रमण किया गया।

कम्बोज और गांधार ने अचमेनिद साम्राज्य की बीसवीं और सबसे अमीर स्ट्रैप बनाई।

कहा जाता है कि साइरस प्रथम ने पारोपमिसाडे (हिंदू कुश के लिए पारोपमिसस ग्रीक) में कापिसी (आधुनिक बेग्राम) नामक प्रसिद्ध काम्बोज शहर को नष्ट कर दिया था।

327 ई.पू. में मैसेडोन के सिकंदर के अधीन यूनानियों ने पंजाब पर कब्जा कर लिया, लेकिन दो साल बाद वापस ले लिया, जिससे चंद्रगुप्त मौर्य को कदम रखने का अवसर मिला।

Mahajanapadas pdf

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