Constitution definition Contents
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- सांसदों के विशेषाधिकार (Privileges of MPS)
- वाक् स्वतंत्रता
- गिरफ्तारी से उन्मुक्ति
- साक्षी के रूप में हाजिरी से मुक्ति
- राज्यसभा एवं लोकसभा की शक्तियां
- विधि निर्माण की प्रक्रिया
- बजट (Budget)
- दल-बदल
- संसदीय समितियां
- कार्य मंत्रणा समिति
- याचिका समिति
- लोक लेखा समिति
- प्राक्कलन समिति
- विशेषाधिकार समिति
- अधीनस्थ विधान समिति
- सरकारी उपक्रमामति
- सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति
- सदन में अनुपस्थिति से संबंधित समिति
- नियम समिति
- अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी समिति
- संसद सदस्यों के वेतन एवं भत्ते संबंधी समिति
- ग्रन्थालय समिति
- महिला अधिकार समिति
- आचार संहित समिति
- सामान्य प्रयोजन समिति
- आवास समिति
- लाभ के पदों संबंधी संयक्त समिति
- संघ की न्यायपालिका
- गठन
- न्यायाधीशों की नियुक्ति
- कार्यकाल
- सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां
- अपीलीय क्षेत्राधिकार
- दीवानी क्षेत्राधिकार
- फौजदारी क्षेत्राधिकार
- मौलिक अधिकारों के विषय में क्षेत्राधिकार
- परामर्शी शक्तियां
- अपने निर्णय के पुनर्निरीक्षण का अधिकार
- एक अभिलेख न्यायालय
- कार्यवाही तथा कार्यविधि को नियमित करने के लिए नियमों का निर्माण करने की शक्ति
- मुकदमों को स्थानान्तरित करने की शक्ति
- संविधान की व्याख्या
- न्यायिक पुनरावलोकन
- विविध कार्य
- क्षेत्राधिकार में विस्तार
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
सांसदों के विशेषाधिकार (Privileges of MPS) – Constitution definition – Indian constitution book
- संविधान के अनुच्छेद 105 में संसद के दोनों सदनों तथा उनके सदस्यों के विशेषाधिकारों तथा उन्मुक्तियों का वर्णन किया गया है लोकसभा के अध्यक्ष व राज्यसभा के सभापति को अधिकार है कि वे किसी व्यक्ति को दीर्घा से हटा सकते हैं। ।
- उन्हें यह अधिकार है कि वे किसी व्यक्ति के सदन में प्रवेश पर रोक लगा सकते हैं।
- सदन के अन्दर उत्पन्न होने वाले विवादों का सदन स्वयं निपटारा कर सकता है।
- संसद की चारदीवारी के अन्दर जो कुछ कहा जाता है, कोई न्यायालय उसकी जांच नहीं कर सकता।
- अगर कोई दर्शक या बाहरी व्यक्ति सदन के विशेषाधिकारों को भंग करता है, तो सदन उसे दण्डित कर सकता है। यह दण्ड भर्त्सना, वाक्ताड़न या कारावास के रूप में हो सकता है।
- सदन प्रकाशन संबंधी कानून बनाकर अपनी कार्यवाही के प्रकाशन पर रोक लगा सकता है या उसे अधिनियमित कर सकता है। 1975 की आपातस्थिति के दौरान लोकसभा ने सदन की कार्यवाही को प्रकाशित करने पर रोक लगा दी थी।
वाक् स्वतंत्रता – Constitution definition
- संसद या उसकी किसी समिति में कही गयी किसी बात या प्रकट किये गये किसी मत या विचार के लिए सांसद पर न्यायालय में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
गिरफ्तारी से उन्मुक्ति – Constitution definition
- संसद के सत्र या उसकी किसी समिति की बैठक के दौरान तथा उसके चालीस दिन पहले व चालीस दिन बाद दीवानी मामले में किसी सदस्य को गिरफ्तार किया जा सकता है, पर इस गिरफ्तारी की सूचना अध्यक्ष या सभापति को देनी पड़ती है।
साक्षी के रूप में हाजिरी से मुक्ति – Constitution definition
- संसद के सत्र के दौरान सदन की अनुमति के बिना किसी सदस्य को न्यायालय द्वारा समन भेजकर गवाही के लिए नहीं बुलाया जा सकता।
राज्यसभा एवं लोकसभा की शक्तियां – Constitution definition
- लोकसभा लोकप्रिय सदन है, जो जन-आकांक्षाओं का प्रतीक है। राज्यसभा लोकसभा की सहयोगी संस्था है।
- संविधान के अनुच्छेद 109 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ‘धन विधेयक’ राज्यसभा में प्रस्तुत नहीं किया जायेगा। धन विधेयक की परिभाषा अनुच्छेद 110 में दी गयी है।
- राज्यसभा विधेयक की प्राप्ति की तारीख से चौदह दिन की अवधि के भीतर विधेयक को अपनी सिफारिशों सहित लोकसभा को लौटा देगी और ऐसा होने पर लोकसभा, राज्यसभा की किसी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है तो धन विधेयक राज्यसभा द्वारा सिफारिश किये गये और लोकसभा द्वारा स्वीकार किये गये संशोधनों सहित दोनों सदनों द्वारा पारित किया समझा जाता है। यदि लोकसभा, राज्यसभा की किसी भी सिफारिश को स्वीकार नहीं करती तो धन विधेयक, राज्यसभा द्वारा सिफारिश किये गये किसी संशोधन के बिना दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित हुआ समझा जायेगा, जिस रूप में उसे लोकसभा द्वारा पारित किया गया था।
- यदि लोकसभा द्वारा पारित और राज्यसभा को उसकी सिफारिशों के लिए प्रेषित धन विधेयक उक्त चौदह दिन की अवधि के भीतर लोकसभा को नहीं लौटा दिया जाता, तो उक्त अवधि की समाप्ति पर वह दोनों सदनों द्वारा उसी रूप में पारित समझा जायेगा, जिस तरह से लोकसभा द्वारा पारित किया गया था।
- वित्तीय विधेयक दो प्रकार के होते हैं: (1) वित्तीय विधेयक प्रथम श्रेणी और (2) वित्तीय विधेयक द्वितीय श्रेणी। प्रथम श्रेणी के वित्त विधेयक वे हैं जिनमें वे विषय शामिल हैं, जिनका वर्णन अनुच्छेद 110 में किया गया है।
- किन्तु इसमें केवल उन्हीं सब विषयों का वर्णन नहीं है, जो अनुच्छेद 110 में दिये गये हैं, अपितु इसके अतिरिक्त कई अन्य प्रावधान भी हैं।
- दूसरी श्रेणी के वित्त विधेयक का संबंध संचित निधि से व्यय से होता है। प्रथम श्रेणी का विधेयक (1) राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सकता, और (2) पेश करने से पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकृति जरूरी है। इन दो सीमाओं के अतिरिक्त वह साधारण विधेयक है और उसी प्रकार से पास होता है। दूसरी श्रेणी के वित्त विधेयक को राज्यसभा में पेश किया जा सकता है, किन्तु विचार करने से पूर्व राष्ट्रपति की स्वीकृति अनिवार्य है। संविधान के अनुच्छेद 75(3) में कहा गया है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से निम्न सदन अर्थात् लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगी। यह उत्तरदायित्व कई तरीकों से सुनिश्चित किया जा सकता है, जैसे-अविश्वास प्रस्ताव, निन्दा प्रस्ताव, प्रश्न पूछना, स्थगन प्रस्ताव, काम रोको एस्ताव, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, कटौती प्रस्ताव आदि।
- अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में 50 सांसदों द्वारा एक अधिवेशन में एक बार पेश किया जा सकता है। प्रश्न दोनों सदनों में पूछे जा सकते हैं।
- अनुच्छेद 54 के अनुसार लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं तथा अनुच्छेद 66 के अनुसार उपराष्ट्रपति को चुनते हैं।
- लोकसभा अपने अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को चुनती व पदच्युत करती है।
- सामान्य आपातस्थिति का अनुमोदन संसद 30 दिन के अन्दर करती है, जबकि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन व वित्तीय आपातस्थिति का अनुमोदन वह 2 मास के अन्दर करती है।
- भारत में ऊपरी सदन राज्यसभा को दो ऐसी शक्तियां प्राप्त हैं, जो लोकसभा को प्राप्त नहीं हैं।
- अनुच्छेद 249 के अनुसार, राज्यसभा उपस्थित तथा वोट देने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से यह प्रस्ताव पास कर सकती है कि राज्य सूची में दिया गया अमुक विषय राष्ट्रीय महत्त्व का है, तो उस पर संघीय सरकार कानून बना सकती है। ऐसा कानून एक वर्ष के लिए मान्य होता है तथा इसे एक-एक वर्ष करके बढ़ाया जा सकता है।
- अनुच्छेद 312 के अंतर्गत अगर राष्ट्रीय हित में या वैसे अनिवार्य समझकर राज्यसभा उपस्थित तथा वोट देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास करके अखिल भारतीय सेवाएं गठित करने की सिफारिश करे, तो सरकार ऐसी सेवाएं गठित करती है। राज्यसभा ने इस शक्ति का प्रयोग 1963 में किया था और 1964 में भारतीय वन सेवा गठित की गयी थी।
विधि निर्माण की प्रक्रिया -Constitution definition
- विधि-निर्माण की प्रक्रिया संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन में
प्रस्तुत की जा सकती है। - धन विधेयक या वित्त विधेयकों को छोड़कर अन्य सभी विधेयकों को साधारण विधेयक कहते हैं।
- विधि-निर्माण से संबंधित विधेयक को दोनों सदनों में तीन-तीन वाचनों से गुजरना पड़ता है। प्रथम वाचन में सिर्फ विधेयक पर थोड़ी-बहुत चर्चा होती है। इसकी नीति एवं सिद्धान्तों पर कोई चर्चा नहीं होती। संसद की अनुमति मिलने के बाद ही विधेयक प्रस्तुत किया जाता है। संसद से आशय संसद के दोनों सदनों से है।
- विधि का प्रारूप द्वितीय वाचन में बड़ी कठिनाइयों से गुजरता है। द्वितीय वाचन में दो तरह के चरण होते हैं। प्रथम चरण में इस पर सामान्य चर्चा होती है। उसके बाद इसे प्रवर समिति या संयुक्त समिति को समीक्षार्थ सौंप दिया जाता है।
- प्रवर या संयुक्त समिति विधेयक के एक-एक खण्ड पर विचार करती है। उसके बाद समिति लोकसभा सचिवालय या सदनों को भेजने के लिए विधेयक से संबंधित प्रतिवेदन तैयार करती है। यह प्रतिवेदन स्तर विधि-निर्माण का सबसे महत्त्वपूर्ण चरण है।
- यदि किसी विधेयक पर राज्यों की राय जाननी हो, तो विधेयक को राज्यों के पास भेजा जाता है एवं तीन महीने के अन्दर उन्हें राय देने को कहा जाता है। सदन में रखे जाने के बाद (राय प्राप्ति के बाद) इसे प्रवर या संयुक्त समिति को भेजा जाता है। प्रवर समिति इस पर विचार करने के बाद इसका प्रतिवेदन सदनों में भेज देती है।
- विधेयक पर प्रवर/संयुक्त समिति का प्रतिवेदन प्राप्त हो जाने के बाद यदि सदन इसके प्रतिवेदित रूप पर विचार करने के लिए तैयार होता है, तो द्वितीय वाचन के द्वितीय चरण में सदन इस विधेयक पर खण्डवार विचार आरम्भ करता है। सदस्य इसमें संशोधन भी पेश कर सकते हैं। जो संशोधन स्वीकृत हो जाते हैं, वे विधेयक के अंग बन जाते हैं।
- जब सदन उस विधेयक पर विचार कर लेता है, तो मंत्री कहता है कि उसके द्वारा प्रस्तुत विधेयक को पास किया जाये। यदि सदन सहमत है. तो वह इसे अपने साधारण बहुमत से पारित कर द्वितीय सदन में भेज देता है। वहाँ भी विधेयक को तीन चरणों से गुजरना पड़ता है। उसके बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाने के बाद विधेयक कानून बन जाता है।
- अनुच्छेद 110: कोई विधेयक धन विधेयक समझा जायेगा यदि उसमें केवल निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों से संबंधित उपबंध हैं, अर्थात-
- (क) किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन या विनियमनः –
- (ख) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभूति देने का विनियमन अथवा भारत सरकार द्वारा अपने ऊपर ली गयी या ली जाने वाली किन्हीं वित्तीय बाध्यताओं से संबंधित विधि का संशोधन;
- (ग) भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी निधि में धन जमा करना या उसमें से धन निकालना;
- (घ) भारत की संचित निधि में से धन का विनियोगः
- (ड.) किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना या ऐसे किसी व्यय की रकम को बढ़ाना;
- (च) भारत की संचित निधि या भारत के लोक लेखे से धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या उसका निर्गमन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं की संपरीक्षा; या
- (छ) उपखंड (क) से उपखंड (च) में विनिर्दिष्ट किसी विषय का आनुषंगिक कोई विषय।
बजट (Budget) – Constitution definition
- बजट एक प्रक्रिया है, जो विधायन से संबंधित हैं, खासकर वित्तीय विधायन से है। इसमें किसी देश के गतवर्ष के आय-व्यय एवं वर्तमान वर्ष के आय-व्यय से संबंधित अनुमान रहते हैं। इसी कारण बजट को राष्ट्र का ‘वित्तीय दर्पण’ कहा जाता है।
- बजट शब्द अंग्रेजी भाषा के Budget शब्द से निकला है, जिसका अर्थ थैला या झोला होता है। आजकल इसका प्रयोग वार्षिक वित्तीय विवरण के संदर्भ में होता है।
भारत में एकवर्थ कमिटी की रिपोर्ट पर 1921 में आम बजट एवं रेलवे बजट को अलग कर दिया गया। - भारतीय संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार राष्ट्रपति एवं अनुच्छेद 202 के अनुसार, राज्यपाल क्रमशः संसद एवं राज्य विधानमंडलों में प्रतिवर्ष वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करवाते हैं, जिसे बजट के दूसरे नाम से जाना जाता है।
- वार्षिक वित्तीय विवरण सर्वप्रथम लोकसभा में प्रस्तुत किये जाते हैं।
- वार्षिक वित्तीय विवरण में भारत की संचित निधि पर भारित व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशि तथा संचित निधि से किये जाने वाले अन्य व्यय की पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियाँ पृथक्-पृथक् दिखायी जाती हैं।
- भारत की संचित निधि पर भारित व्यय में राज्यसभा के सभापति एवं उपसभापति, लोकसभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष, उच्चतम न्यायालय क न्यायाधीश, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक तथा संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों के वेतन-भत्ते होने के साथ-साथ भारत सरकार का ऋण, किसी न्यायालय के निर्णय पर क्षतिपूर्ति की रकम एव अन्य ऐसे व्यय होते हैं, जो संसद विधि द्वारा तय करती है।
- अनच्छेद 113 के अनुसार भारत की संचित निधि पर भारित व्यय से संबंधित प्राक्कलन संसद के मतदान के लिए व्यय के मद पर विचार विमर्श करती है।
- लोकसभा में किसी अनुदान की मांग को स्वीकार कर सकती है, कम कर सकती है या उसे अस्वीकार कर सकती है। किसी भी अनुदान की मांग
राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना नहीं की जा सकती है। - राज्यों के वार्षिक वित्तीय विवरण में राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय तथा उसकी पूर्ति के लिए अपेक्षित राशियों एवं संचित निधि पर
भारित अन्य व्यय अलग-अलग रूप से दर्शाये जाते हैं। - राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय में राज्यपाल के वेतन-भत्ते, विधान सभाध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष, विधानपरिषद के सभापति एवं उपसभापति के वेतन-भत्ते, राज्य का ऋण भार, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन- भत्ते, किसी न्यायालय द्वारा दिए गये फैसले की क्षतिपूर्ति की रकम एवं अन्य ऐसे व्यय शामिल होते हैं, जो राज्य-विधानमण्डल विधि द्वारा निर्धारित करे |
दल-बदल
- दल-बदल से आशय है किसी व्यक्ति या व्यक्ति समूह द्वारा अपना राजनीतिक दल छोड़कर, अन्य दल में जा मिलना या स्वयं अपना दल बन लेना या निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में स्थापित होना अर्थात् निर्दलीय बन जाना।
- दल-बदल की चर्चा संविधान की दसवीं अनसची में वर्णित है, जे राजीव गाँधी की सरकार द्वारा 1985 में संविधान का 52वाँ संशोधन क संविधान में जोड़ी गयी है।
- दल-बदल अधिनियम संबंधी कानून 1985 में बनाया गया था।।
- इस अधिनियम में यह कहा गया है कि यदि किसी दल के एक-तिहाई या दो-तिहाई सदस्य दल छोड़ते हैं, तो उसे दल-बदल नहीं माना जायेगा।
- दल-बदल अधिनियम 1985 में कहा गया है कि यदि दल-बदल का प्रश्न उठता है, तो इसमें सदन के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा एवं किसी न्यायालय को उसमें हस्तक्षेप का अधिकार नहीं होगा।
- भारत में दल-बदल को ‘आया राम, गया राम’, पॉलिटिक्स ऑफ होर्स ट्रेडिंग’, कार्पेट-क्रासिंग, एवं क्रासिंग ऑफ फ्लोर्स’ जैसे कई दूसरे नामों से भी जाना जाता है।
- जो सदस्य लोक सभा का अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या राज्य सभा का उपसभापति या किसी राज्य की विधान परिषद का सभापति/उपसभापति या किसी राज्य की विधान सभा का अध्यक्ष/उपाध्यक्ष निर्वाचित हो जाता है वह अनर्ह नहीं होगा, यदि वह ऐसे पद के लिए अपने निर्वाचन के कारण अपने दल की सदस्यता त्याग देता है या यदि वह ऐसे पद पर आसीन न रहने के पश्चात् पुनः राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
- 2003 में 91वें संशोधन अधिनियम के अनुसार, दल परिवर्तन करने वाला व्यक्ति मंत्री नहीं हो सकता है। वह इसके अलावा सवेतन राजनीतिक पद धारण करने के लिए भी निरहित हो जायेगा। यह निरहित तब तक बनी रहेगी जब तक सदस्य के रूप में उसकी पदावधि समाप्त नहीं हो जाती या जब तक वह किसी सदन के लिए निर्वाचन में भाग नहीं लेता या किसी सदन के लिए निर्वाचित घोषित नहीं किया जाता, इनमें से जो भी पहले हो।
संसदीय समितियां (Parliamentary Committees)
- संसद अपना अधिकांश कार्य समितियों के माध्यम से करती है। इन समितियों को कुछ ऐसे कार्य को सम्पादित करने के लिए गठित किया जाता है, जिनके लिए विशेषज्ञों के विचार विमर्श की आवश्यकता नही होती है। भारत में समिति प्रणाली का विकास प्राचीन काल से ही था, लेकिन आधुनिक समय में समिति प्रणाली का विकास भारत शासन अधिनियम 1919 (माण्टग्यू चेम्सफोर्ड) के परिणामस्वरूप हआ था। सामान्यतः समितिया दो प्रकार की होती हैं – स्थायी समितियां और अस्थायी समितियां। स्थायी समितियां वे समितियां हैं, जो समय-समय पर निर्वाचित की जाती है। इन समितियों की प्रकृति स्थायी है, जबकि अस्थायी समितियां वे समितियां होती हैं, जो किसी उद्देश्य के लिए गठित होती है और कार्य के समाप्त होने के बाद समाप्त हो जाती है।
कार्य मंत्रणा समिति
- इस समिति में 15 सदस्य होते हैं। इसका सभापति स्वयं अध्यक्ष होता है। सदस्यों का नाम-निर्देशन अध्यक्ष करता है। कार्यमंत्रणा समिति का गठन जन- निर्वाचन के बाद ही लोकसभा के गठन के बाद किया जाता है। इस समिति का कार्यकाल निश्चित नहीं है। अन्य समितियों की भांति यह समिति उस
समय तक कार्य करती है जब तक कि नयी समिति नाम निर्दिष्ट नहीं की जाती। - व्यवहार में प्रतिवर्ष मई में नयी समिति गठित की जाती है। वर्ष के मध्य में भी रिक्त स्थानों की पूर्ति की जाती है, परन्तु ऐसे सदस्य समिति के शेष कार्यकाल तक ही कार्य कर पाते हैं। इस समिति का कार्य सरकारी विधेयकों का समय निश्चित करने हेतु सिफारिश करना है। यह समिति ऐसे अन्य कार्य भी करती है, जो कि समय-समय पर अध्यक्ष द्वारा उसे सौंपे जाते हैं। विधेयक, बजट, राष्ट्रपति का अभिभाषण, अनुदान मांगें, आदि प्रश्नों पर भी यह समिति विचार करती है।
याचिका समिति – Constitution definition
- प्रत्येक सदन की एक याचिका समिति होती है। लोकसभा में इस समिति के 15 सदस्य और राज्यसभा में 10 सदस्य होते हैं। लोकसभा का अध्यक्ष ‘याचिका समिति’ के सदस्यों का नाम निर्देशन करता है। इस समिति का कार्यकाल एक वर्ष है। इनका नाम-निर्देशन सभा में विभिन्न दलों तथा समूहों की संख्या के अनुपात में किया जाता है। यह समिति बहुत पुरानी समिति है तथा इसका प्रादुर्भाव सन् 1921 से माना जाता है।
- यह समिति प्रत्येक याचिका की जांच करती है, जो लोकसभा में पेश किये जाने के बाद उसे सौंपी गयी मानी जाती है। समिति का यह कर्त्तव्य है कि वह याचिकाओं में की गयी विशिष्ट शिकायतों के संबंध में सभा को रिपोर्ट दे और उससे पहले ऐसा साक्ष्य ले जैसा कि वह उचित समझे। समिति यह भी निर्देश दे सकती है कि याचिका पूरी की पूरी या उसका सार, सभा के सभी सदस्यों में परिचालित किया जाये।
लोक लेखा समिति – Constitution definition
- ‘लोक लेखा समिति’ का मुख्य काम है विनियोग लेखों की जांच करना, जिसमें भारत सरकार के खर्चे के लिए संसद द्वारा अनुदत्त राशियों का विनियोग दिखाया जाता है। इसके साथ ही भारत सरकार के वार्षिक वित्तीय लेखे और सभा के सामने रखे गये ऐसे अन्य लेखों की परीक्षा करना भी समिति का काम है।
- भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवदेन की जांच करते समय समिति को इन बातों का बताना पड़ता है कि यह राशि सेवा का प्रयोजन के लिए व्यय की गयी है, जिनके लिए वह निर्धारित थी।
- जिस प्राधिकारी ने व्यय का नियंत्रण किया है वह उसके अधिकारों के अनुरूप है।
- प्रत्येक पुनर्विनियोग इस विषय पर सक्षम अधिकारी द्वारा बनाए गये नियमों के अनुकूल किया गया है।
- समिति सामान्यत: उन मामलों की भी जांच करती है, जिनमें घाटे है या है या वित्तीय अनियमितताएं पाई जाती हैं या जहां खर्चे से कोई लाभ नहीं होता।
- ‘लोक लेखा समिति’ में अधिकाधिक 22 सदस्य होते हैं, जिन्हें संसद (लोकसभा से-15 एवं राज्यसभा से 7) प्रतिवर्ष अपने सदस्यों में से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से चुनती है। कोई मंत्री इस समितिका सदस्य नहीं चुना जाता और यदि कोई सदस्य समिति का सदस्य निर्वाचित होने के बाद मंत्री नियुक्त हो जाता है, तो उस नियुक्ति की तिथि से वह समिति का सदस्य नहीं रहता। वर्ष 1967 से चली आ रही प्रथा के अनुसार विपक्ष के किसी सदस्य को इस समितिका सभापति नियुक्त किया जाता है। एम. आर. मसानी विरोधी दल के प्रथम नेता थे, जो इस समिति के सभापति मनोनीत किये गये थे।
प्राक्कलन समिति – Constitution definition
- लोकसभा प्राक्कलनों पर काफी लम्बे समय तक विचार करती है, किन्तु समयाभाव के कारण यह प्राक्कलनों के तकनीकी पहलुओं पर विचार नहीं कर पाती। अतः इस हेतु लोकसभा ने एक समिति बनाई है जिसे प्राक्कलन समिति’ कहते हैं। प्राक्कलन समिति के प्रमुख कृत्य इस प्रकार हैं-
- समिति ऐसे प्राक्कलनों की जांच करती है जिनकी जांच करना वह उचित समझे या जो सभा या अध्यक्ष द्वारा विशेष रूप से जांच के लिए सौंपे गये हों।
- अनुमानों में अन्तर्निहित नीति के अनुकूल किसी प्रकार की मितव्ययिता, संगठन में सुधार अथवा प्रशासन में सुधार पर समिति अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करती है।
- समिति प्रशासन में मितव्ययिता लाने के लिए तथा उसकी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए वैकल्पिक नीतियां सुझाती है।
- समिति यह भी निश्चित करती है कि अनुमानों में निहित नीति को सीमा के अन्तर्गत धन का समुचित वितरण किया गया है अथवा नहीं?
- यह सुझाव देना भी समिति का कार्य है कि संसद के समक्ष अनुमानों को किस प्रकार प्रस्तुत किया जाये?
- ‘प्राक्कलन समिति’ में तीस सदस्य होते हैं, जिनका चुनाव लोकसभा के सदस्यों में से प्रति वर्ष आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से होता है।
विशेषाधिकार समिति – Constitution definition
- संसद के प्रत्येक सदन को सामूहिक रूप से और उसके सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से कुछ विशेषाधिकार तथा उन्मुक्तियां प्राप्त हैं। इन विशेषाधिकारों का उद्देश्य सभा, उसकी समितियों तथा सदस्यों की स्वतंत्रता, प्राधिकार और गरिमा की रक्षा करना है।
- विशेषाधिकार से सम्बन्धित विषय पर विचार का प्रश्न विशेषाधिकार समिति को सौंपा जाता है। नयी लोकसभा के प्रारम्भ में और उसके बाद समय-समय पर अध्यक्ष समिति का नाम-निर्देश करता है। इस समिति में अधिकाधिक 15 सदस्य होते हैं।
अधीनस्थ विधान समिति – Constitution definition
- लोक कल्याणकारी राज्य में अधीनस्थ विधान एक आवश्यकता बन गया है। संसद किसी कानून में मोटे तौर पर सिद्धान्त निर्धारित कर देती है तथा कार्यपालिका उन सिद्धान्तों के अनुसार औपचारिक और प्रक्रिया संबंधी ब्यौरा तैयार करती है, जो नियमों तथा विनियमों के रूप में होती है। इसे ‘अधीनस्थ विधान’ कहते हैं जिस पर नियन्त्रण रखना आवश्यक है।।
- लोकसभा अपनी ‘अधीनस्थ विधान समिति के माध्यम से यह नियम रखती है। समिति का मुख्य कार्य इस बात की जांच करना और सभाको रिपोर्ट देना है कि नियम, विनियम, उपनियम, आदेश बनाने की संविधान द्वारा प्रदत्त या संसद द्वारा प्रत्याशित शक्तियों का प्रयोग उचित ढंग से प्रत्यायोजन की सीमाओं में किया जा रहा है या नहीं। इस समिति में 11 सदस्य होते हैं, जिनका नाम-निर्देशन अध्यक्ष करता है। समिति का कार्यकाल उसकी रिक्ति की तिथि से एक वर्ष तक होता है।
सरकारी उपक्रमामति – Constitution definition
- सरकारी पर संसद का समुचित नियंत्रण रखने के प्रश्न पर पहली बार 1955 लाकर ना में चर्चा की गयी। यह सुझाव दिया गया कि विभिन्न प्रथियो कारी निगमों, कम्पनियों तथा संस्थाओं के मामलों। की जांच करने के लिए एक अलग संसदीय समिति बनाई जाये।
- 24 नवम्बर, 1961 को सरकार ने राज्य के उपक्रमों संबंधी एक संयुक्त समिति की नियुक्ति का फैसला किया। मई 1964 को सरकारी उपक्रम समिति’ गठित की गयी।
- समिति के अधिकाधिक 15 सदस्य होते हैं, जिनका चुनाव लोकसभा अपने सदस्यों में से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त के अनुसार
एकल संक्रमणीय मत के माध्यम से करती है। - समिति के सभापति की नियुक्ति अध्यक्ष द्वारा समिति के सदस्यों में से की जाती है। इसी रीति से चुने गये राज्यसभा के 7 सदस्य भी समिति में लिए जाते हैं।
- इस प्रकार समिति में कुल 22 सदस्य हो जाते हैं। समिति के मुख्य कार्य हैं-
- ऐसे सरकारी उपक्रमों की रिपोर्ट तथा लेखों की जांच करना, जो विशेष रूप से समिति को इस प्रयोजन के लिए सौंपे गये हों,
- सरकारी उपक्रमों के संबंध में नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट पर विचार करना,
- सरकारी उपक्रम की स्वायत्तता तथा कार्यकुशलता के सन्दर्भ में इस बात की जांच करना कि सरकारी उपक्रमों का प्रबन्ध स्वस्थ व्यावहारिक सिद्धान्तों तथा बुद्धिमत्तापूर्ण व्यावसायिक व्यवहार का अनुसार किया जा रहा है या नहीं। इस समिति का अस्तित्व कृष्ण मेनन समिति के प्रतिवेदन का परिणाम था।
सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति – Constitution definition
- मंत्री समय-समय पर संसद में आश्वासन तथा वचन देते रहते हैं। आश्वासनों का उचित समय में पालन करवाने हेतु संसद के प्रत्येक में सरकारी आश्वासनों संबंधी समिति गठित की जाती है।
- लोकसभा में इस समिति में 15 सदस्य होते हैं और राज्यसभा में इसके 10 सदस्य होते हैं। समिति के सदस्यों की पदावधि अधिकाधिक एक वर्ष होती है। समिति उन आश्वासनों, प्रतिज्ञाओं और वचनों की संवीक्षा करती है, जो मंत्रीगण समय-समय पर संसद में प्रश्नोत्तर काल के दौरान या विधेयकों, संकल्पों, प्रस्तावों, आदि पर चर्चा के दौरान देते हैं।
सदन में अनुपस्थिति से संबंधित समिति – Constitution definition
- सदस्यों की अनुपस्थिति की अनुमति के प्रार्थना-पत्रों और तत्संबंधी विषयों पर विचार करने के लिए एक समिति बनाई गयी है, जिसे ‘सभा में बैठको से सदस्यों की अनुपस्थिति संबंधी समिति’ कहा जाता है।
- इस समिति में 15 सदस्य होते हैं जिनका नाम-निर्देशन अध्यक्ष करता है। इस समिति के मुख्य कार्य है –
- सभा की बैठकों से अनुपस्थित सदस्यों से प्राप्त सभी प्रार्थना-पत्रों पर विचार करना और
- प्रत्येक ऐसे मामलों की छानबीन करना, जहां कोई सदस्य बिना अनुमति के सभा की सारी बैठकों से 60 दिन या अधिक समय तक लगातार अनुपस्थित रहा हो और यह रिपोर्ट देना कि क्या इस अनुपस्थिति को क्षमा कर दिया जाये या कि उस मामले की परिस्थितियों में यह उचित है कि सभा उस सदस्य के स्थान के रिक्त होने की घोषणा कर दे।
नियम समिति – Constitution definition
- ‘नियम समिति’ का नाम-निर्देशन अध्यक्ष करता है और उसके 15 सदस्य होते हैं। पदेन अध्यक्ष इस समिति का सभापति होता है। समिति के सदस्यों के अतिरिक्त अन्य सदस्यों को भी समिति की विशेष बैठकों में आमंत्रित किया जा सकता है।
अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के कल्याण संबंधी समिति – Constitution definition
- इसमें दोनों सदनों के सदस्य शामिल होते हैं। इस समिति के 30 सदस्य हैं- 20 लोकसभा के और 10 राज्यसभा के। ये सदस्य संसद से अलग-अलग सदनों द्वारा अपने सदस्यों में से निर्वाचित किये जाते हैं।
- यह अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के कल्याण से सम्बन्धित उन सभी मामलों पर विचार करती है, जो केन्द्रीय सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और इस बात पर नजर रखती है कि इन वर्गों से संबंधित संवैधानिक रक्षोपायों का उचित क्रियान्वयन किया जाये।
संसद सदस्यों के वेतन एवं भत्ते संबंधी समिति – Constitution definition
- यह दोनों सदनों को संयुक्त समिति हैं, जिसमें लोकसभा के 10 तथा राज्यसभा के 5 सदस्य शामिल किये जाते हैं। यह समिति संसद सदस्यों के वेतन-भत्ते एवं पेंशन संबंधी नियम बनाने के अतिरिक्त, यह उनके चिकित्सा आवास, डाक टेलीफोन, निर्वाचन-क्षेत्र एवं सचिवालय संबंधी सुविधाओं के संबंध में नियम बनाती हैं।
ग्रन्थालय समिति
- ग्रन्थालय समिति, जिसमें दोनों सदनों के सदस्य शामिल होते हैं, संसद के ग्रन्थालय से सम्बन्धित मामलों पर विचार करती है।
महिला अधिकार समिति
- वर्ष 1997 में दोनों सदनों के सदस्यों से गठित इस समिति का उद्देश्य अन्य बातों के साथ, सभी क्षेत्रों में महिलाओं को गरिमा एवं समानता प्रदान करती है।
आचार संहिता समिति
- इस समिति का गठन वर्ष 2000 में दोनों सदनों में किया गया।
सामान्य प्रयोजन समिति
- यह समिति सभा के कार्यों संबंधी ऐसे मामलों पर विचार करती है जो किसी अन्य संसदीय समिति के यथोचित अधिकार क्षेत्र में नहीं आते और अध्यक्ष/सभापति को सलाह देती है।
आवास समिति
- यह समिति सदस्यों के लिए आवास और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करती है।
लाभ के पदों संबंधी संयक्त समिति
- यह समिति लाभ के पदों संबंधी नियन्त्रण रखने का कार्य करती है।
संघ की न्यायपालिका – Constitution definition
- सवाच्च न्यायालय एक संघीय न्यायालय है। शेष सभी न्यायालय इसके अधीन हैं, जिनमें राज्यों के उच्च न्यायालय भी सम्मिलित हैं। भारत में अमारक की तरह केन्द्र और राज्यों में अलग-अलग न्यायालय नहीं हैं। भारत में एकीकृत न्यायपालिका की स्थापना की गयी है। 1935 के अधिनियम के अधीन भारत में प्रथम बार फेडरल कोर्ट की स्थापना की गयी थी। नये संविधान में इसको सुप्रीम कोर्ट का नाम दिया गया तथा 26 जनवरी, 1950 को जब संविधान लागू हुआ तो देश की सुप्रीम कोर्ट का भी उद्घाटन किया गया।
गठन
- सर्वोच्च न्यायालय में प्रारम्भ में एक मुख्य न्यायाधीश और 7 अन्य न्यायाधीश होते थे।
- 1957 में संसद में एक कानून पास हुआ जिसके अनुसार मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर बाकी न्यायाधीशों की संख्या 7 से 10 कर दी गयी।
- अप्रैल 1986 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 17 से 25 कर दी गयी। पुनः 2009 में यह संख्या बढ़ाकर 30 कर दी गयी। इस प्रकार आजकल सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और 30 अन्य न्यायाधीश हैं।
- योग्यताएं: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में निम्नलिखित योग्यताओं का होना आवश्यक है:
- वह भारत का नागरिक हो।
- वह कम से कम 5 वर्ष तक किसी एक, दो या अधिक उच्च
- न्यायालयों का न्यायाधीश रह चुका हो, अथवा
- वह किसी एक, दो या उससे अधिक उच्च न्यायालयों में कम से
- कम 10 वर्ष तक वकालत कर चुका हो, अथवा
- राष्ट्रपति की दृष्टि में कुशल विधिवेत्ता हो।
- उसकी आयु 65 वर्ष से कम हो।
- योग्यताएं: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों में निम्नलिखित योग्यताओं का होना आवश्यक है:
- कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश (अनुच्छेद 126): जब कभी मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो या मुख्य न्यायाधीश अपने कर्त्तव्य का पालन करने में असमर्थ हो तो राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश के कर्त्तव्यों का पालन करने के लिए उच्चतम न्यायालय के किसी वरिष्ठतम न्यायाधीश को नियुक्त कर सकता है।
- तदर्थ न्यायाधीश अनुच्छेद (127): मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की अनुमति से उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश की योग्यता रखने वाले व्यक्ति को तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकता है।
न्यायाधीशों की नियुक्ति – Constitution definition
- संविधान के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करने का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय वह सर्वोच्च न्यायालय तथा राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों की सलाह लेता है, जिन्हें वह उचित समझता है।
- अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति के लिए मुख्य न्यायाधीशों की सलाह लेना अनिवार्य है। सन् 1993 के सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स बनाम भारत संघ में यह अभिनिर्धारित किया कि उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में किसी भी न्यायाधीश की नियुक्ति भारत के मुख्य न्यायमूर्ति की राय के अनुमय ही की जा सकती है।
मख्य न्यायमूर्ति के दृष्टिकोण की सर्वोपरि मानना होगा। - मुख्य न्यायमूर्ति अपने दी ज्येष्ठतम सहकर्मियों के मत कर विचार और उनकी राय लेना आवश्यक होगा। मुख्य न्यायमूर्ति की राय और अन्य ज्येष्ठ न्यायाधीशों की सामूहिक राय होगी। कार्यपालिका भारत के मुख्य न्यायमूर्ति की सलाह मानने के लिए बाध्य है।
कार्यकाल
- सर्वोच्च न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश अपने पाट पर 65 वा तक कार्य कर सकता है। इसके पूर्व किसी भी न्यायाधीशको तक पद से नहीं हटाया जा सकता, जब तक कि संसद के दोनों मतदान के समय उपस्थित सदस्यों के 2/3 बहुमत और समस्त संख्या के साधारण बहुमत से उसी अधिवेशन में उस न्यायाधीश पर सिद्धष्टाचार
अथवा असमर्थता का आरोप लगाकर एक प्रस्ताव पास कर राष्ट्रपति को पास न भेजें और राष्ट्रपति उस प्रस्ताव पर अपने हस्ताक्षर न कर दे। - सर्वोच्च न्यायालय का कोई भी भी न्यायाधीश अवकाश जातिके पश्चात भारत की सीमा के अन्दर किसी भी न्यायालय में वकालात नहीं कर सकता। परन्तु आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के किसी सेवा निवृत्त न्यायाधीश को कोई विशेष कार्य सौंप सकता है और न्यायाधीश को इस कार्य का वेतन दिया जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां
- सर्वोच्च न्यायालय को ऐसे सभी झगड़ों में प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार प्राप्त होगा, जिनमें विवादः
- केन्द्रीय सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच हो।
- दो या अधिक राज्यों में आपस में हो या उसमें में कोई कामी परम हो जिस पर कोई कानूनी अधिकार निर्भर हो। इस अधिकार से सर्वोच्च न्यायालय संघ और राज्यों में सन्तुलन पैदा कर सकता है।
अपीलीय क्षेत्राधिकार
- संवैधानिक क्षेत्राधिकार : संवैधानिक मामलों में यह न्यायालय तबाही अपील मान सकेगा, जब उच्च न्यायालय यह प्रमाण पत्र दे कि मुक़दमे में कोई कानूनी प्रश्न विचारणीय है। यदि वह ऐसा प्रमाण-पत्र इन्कार कर दे, तो सर्वोच्च न्यायालय स्वयं अपील सुनने के बोल स्वीकृति दे सकता है।
दीवानी क्षेत्राधिकार
- संविधान के 30वें संशोधन द्वारा 20,000 रुपये की राशि की शर्त वटा दी गयी है। अब किसी भी राशि का मुकद्दमा सर्वोच्च न्यायालय के पास आ सकता है, जब उच्च न्यायालय यह प्रमाण-पत्र दे दे कि मुकद्दमा सर्वोच्च न्यायालय के सुनने के योग्य है। यह ऐसे मुकद्दमों की अपीलें भी सुन सकता है, जब उच्च न्यायालय यह प्रमाण-पत्र दे दे कि मुकद्दमें में कोई कानूनी प्रश्न विवादग्रस्त है।
फौजदारी क्षेत्राधिकार
निम्नलिखित फौजदारी मुकद्दमों में ये अपीलें सुन सकेगा:
- यदि अपील करने पर उच्च न्यायालय अपराधी की रिहाई के फैसले को बदल दे और उसे मृत्यु दण्ड दे दे, तो यह दूसरी अपील का मुकद्दमा होगा। यदि किसी मुकद्दमे को उच्च न्यायालय ने अपने पास ले लिया हो और उसने किसी अपराधी को मौत का दण्ड दिया हो।
- यदि उच्च न्यायालय के नियमों के अनुसार यह प्रमाण-पत्र दे दे कि मुकद्दमा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुने जाने के योग्य है। परन्तु, अनुच्छेद 134 के अनुसार अपील की कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है कि यदि उच्च न्यायालयअपराधी को फौजदारी मुकद्दमे में छोड़ने का आदेश जारी कर दे, तो उसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील हो ही।
मौलिक अधिकारों के विषय में क्षेत्राधिकार
- यह न्यायालय को स्वतन्त्रताओं और मौलिक अधिकारों का रक्षक है। 32वें अनुच्छेद के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को यह शक्ति दी गयी है कि यह आदेश या लेख जैसे बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश प्रतिषेध अधिकार पृच्छा और उत्प्रेषण लेख मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए जारी कर सकता है।
परामर्शी शक्तियां – Constitution definition
- 143वें अनुच्छेद के अनुसार, राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि किस भी सार्वजनिक महत्त्व के विषय पर सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श कर सकता है; परन्तु इस अनुच्छेद के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के लिए जरूरी नहीं है कि वह अपनी राय अवश्य दे और न ही राष्ट्रपति के लिए जरूरी है कि वह इसके परामर्श के अनुसार चले।
- 2 अक्टूबर, 1994 को अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह राष्ट्रपति को परामर्श देने के लिए बाध्य नहीं है और इसके साथ ही उसने अयोध्या मामले पर राष्ट्रपति को परामर्श देने से इन्कार कर दिया।
अपने निर्णय के पुनर्निरीक्षण का अधिकार
- भले ही सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश उच्च कोटि के विधिवेत्ता हैं तथा सर्वोच्च न्यायालय में निर्णय करते समय छान-बीन करते हैं, फिर भी उनसे कभी न कभी गलती हो सकती है। इसलिए उनको अपने निर्णयों तथा आदेशों का पनर्निरीक्षण करने का अधिकार दिया गया है। इसके द्वारा उनसे किये गये गलत निर्णय भी संशोधित किये जा सकते हैं। सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार दिया गया है क्योंकि देश में इससे बड़ा कोई न्यायालय नहीं, जिसमें इसके निर्णय के विरुद्ध अपील हो सके।
एक अभिलेख न्यायालय
- संविधान के अनुच्छेद 129 द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को एक अभिलेख न्यायालय भी माना गया है। इसकी समस्त कार्यवाही तथा निर्णय सदैव के लिए यादगार तथा प्रमाण के रूप में प्रकाशित किये जाते हैं तथा देश के समस्त न्यायालयों के लिए ये निर्णय न्यायिक दृष्टांत के रूप में स्वीकार किये जाते हैं।
कार्यवाही तथा कार्यविधि को नियमित करने के लिए नियमों का निर्माण करने की शक्ति
- सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 145 द्वारा न्यायालय की कार्यवाही तथा कार्यविधि को नियमित करने के लिए समय-समय पर नियमों का निर्माण करने की शक्ति दी गयी है।
- 42वें संशोधन द्वारा इस अनुच्छेद में एक नयी उप-धारा सम्मिलित की गयी है। इस नयी उप-धारा के अधीन सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 131ए तथा 139ए के अधीन की जाने वाली कार्यवाहियों को नियमित करने के लिए नियम बनाने की शक्ति दी जाती है।
मुकदमों को स्थानान्तरित करने की शक्ति
- 42वें संशोधन 1976 के द्वारा संविधान में एक नया अनुच्छेद 139ए सम्मिलित किया गया है। इसके द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार दिया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय शीघ्र न्याय दिलाने के उद्देश्य से किसी मुकदमे को एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में भेज सकता है।
संविधान की व्याख्या
- संविधान की व्याख्या तथा रक्षा करना भी सर्वोच्च न्यायालय का कार्य है। जब कभी संविधान की व्यवस्था के बारे में कोई मतभेद उत्पन्न हो तो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उसकी व्याख्या की जाती है और सर्वोच्च न्यायालय की व्याख्या को अन्तिम तथा सर्वोत्तम माना जाता है। अनुच्छेद 141 के अनुसार, “सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित किया गया कानून भारत के क्षेत्र में स्थित सभी न्यायालयों पर बाध्य होगा।”
न्यायिक पुनरावलोकन
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी न्यायिक पुनर्निरीक्षण की शक्ति का प्रयोग कई महत्त्वपूर्ण कानूनों को रद्द करने के लिए किया है।
विविध कार्य
- सर्वोच्च न्यायालय अपना कार्य चलाने के लिए अपने पदाधिकारियों की नियुक्ति करता है। ये नियुक्तियां वह स्वयं तथा संघीय लोक सेवा आयोग
की सहायता से करता है। - उच्चतम न्यायालय देश के अन्य न्यायालयों पर शासन करता है। वह यह देखता है कि प्रत्येक न्यायालय में न्याय ठीक प्रकार से हो रहा है अथवा नहीं।
- राष्ट्रपति अथवा उपराष्ट्रपति के चुनाव संबंधी यदि कोई मतभेद हो जाये तो उसका निर्णय उच्चतम न्यायालय करता है तथा इसका निर्णय अन्तिम
होता है। - संघीय लोक सेवा आयोग के सदस्यों तथा सभापति को पदच्युत करने का अधिकार तो राष्ट्रपति के पास है, परन्तु राष्ट्रपति ऐसा तब ही कर सकेगा, जब उच्चतम न्यायालय उसकी जांच-पड़ताल करके उसको अपराधी घोषित कर दे।
क्षेत्राधिकार में विस्तार – Constitution definition
अनुच्छेद 138 और 139 के अन्तर्गत संसद को अपने अधिनियम द्वारा निम्नलिखित मामलों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार विस्तृत करने का अधिकार है:
- संघ सूची में दिया गया कोई भी मामला,
- उच्च न्यायपालिका के फैसलों के विरुद्ध फौजदारी मामलों में अपीलीय क्षेत्राधिकार,
- कोई भी मामला जो भारत सरकार और किसी भी राज्य की सरकार ने समझौते द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को दिया हो,
- मूल अधिकारों को लागू करने के अतिरिक्त किसी और उद्देश्य के लिए निर्देश, आदेश तथा लेख जारी करना, और
- सर्वोच्च न्यायालय को संविधान द्वारा सौंपे गये क्षेत्राधिकार को अच्छी प्रकार से प्रयोग करने के लिए अन्य महत्त्वपूर्ण शक्ति।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Controller and Auditor-General) – Constitution definition
- संविधान के अनुच्छेद 148 से लेकर 151 तक में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से संबंधित प्रावधान का उल्लेख किया गया है। उसे सार्वजनिक धन का संरक्षक बनाया गया है एवं संपूर्ण वित्तीय प्रशासन को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की अविभाज्य सत्ता के अधीन कर दिया गया है। वह स्वतंत्र होकर अपना कार्य कर सके, इसके लिए उसे कार्यपालिका के नियंत्रण से पूर्णत: मुक्त रखा गया है।
- यद्यपि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, किंतु उसके पद से संसद के दोनों सदनों के समावेदन पर ही हटाया जा सकेगा और उसके आधार (1) साबित कदाचार या. (2) असमर्थता होंगे।
- उसके वेतन और सेवा की शर्ते कानूनी होंगी (अर्थात् संसद की विधि द्वारा अधिकथित) और उसकी पदावधि के दौरान उनमें अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जायेगा।
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की पदावधि उसके पद ग्रहण करने की तारीख से छह वर्ष होगी, किंतु –
- 65 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने पर छह वर्ष की अवधि की समाप्ति के पूर्व पद रिक्त हो जायेगा।
- वह किसी भी समय राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित त्याग-पत्र द्वारा पद त्याग सकेगा।
उसे महाभियोग द्वारा हटाया जा सकेगा (अनुच्छेद 148(1), 124(4)। - उसका वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होगा।
- अन्य विषयों में उसकी सेवा की शर्ते उन्हीं नियमों से अवधारित होंगी, जो
- भारत सरकार के सचिव की पंक्ति के भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य को लागू होती हैं।
- वह सेवा-निवृत्ति के पश्चात भारत सरकार के अधीन कोई अन्य पद धारण करने का पात्र नहीं होगा, जिससे कि उसे संघ या राज्य की कार्यपालिका को प्रसन्न करने के लिए कोई लालच न हो।
- नियंत्रक महालेखा परीक्षक और उसके कर्मचारियों के वेतन और प्रशासनिक व्यय भारत की संचित निधि पर भारित होंगे और इन पर मतदान नहीं होगा।
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के कर्त्तव्य इस प्रकार हैं:
- भारत और प्रत्येक राज्य तथा विधानसभा या प्रत्येक संघ राज्यक्षेत्र की संचित निधि से सभी व्यय की संपरीक्षा और उन पर यह प्रतिवेदन कि क्या ऐसा कोई व्यय विधि के अनुसार है;
- इसी प्रकार संघ और राज्यों की आकस्मिकता निधि और लोक लेखाओं से सभी व्यय की संपरीक्षा और उन पर प्रतिवेदन संघ या राज्य के विभाग द्वारा किये गये सभी व्यापार और विनिर्माण की हानि और लाभ-हानि लेखाओं की संपरीक्षा और उन पर प्रतिवेदन;
- संघ और प्रत्येक राज्य की आय और व्यय की संपरीक्षा जिससे कि उसका यह समाधान हो जाये कि राजस्व के निर्धारण, संग्रहण और उचित आबंटन के लिए पर्याप्त जांच करने के लिए इस निमित नियम और प्रक्रियाएं बनाई गयी हैं;
- (1) संघ और राज्य के राजस्वों से पर्याप्त रूप से वित्त पोषित सभी निकायों और प्राधिकारियों की, (2) सरकारी कंपनियों की (3) अन्य निगमों या निकायों की जब ऐसे निगमों या निकायों से संबंधित विधि द्वारा इस प्रकार अपेक्षित हो, प्राप्ति और व्यय की संपरीक्षा और उस पर प्रतिवेदन।
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