Chhattisgarh में Nag vansh का बहुत पुराण इतिहास है

इस लेख  में महत्वपूर्ण अध्ययन सामग्री उपलब्ध करा रहे है।
जो आने वाली छत्तीसगढ़ PSC के लिए उपयोगी साबित होगी।


छत्तीसगढ़ में नागवंश (Nag vansh) की दो शाखाओं का उल्लेख मिलता है :-

  1. कवर्धा में फणिनाग वंश 
  2. बस्तर में छिंदकनाग वंश 

बस्तर में छिंदक नाग वंश  (Nag Vansh)

बस्तर का प्राचीन नाम “चक्रकूट” तो कई उसेे “भ्रमरकूट” कहते हैं।

यहाँ नागवंशियों का शासन था।

नागवंशी शासकों को सिदवंशी भी कहा जाता था।

चक्रकोट में छिंदक नागवंशो की सत्ता 400 वर्षो तक कायम रही।

ये दसवीं सदी के आरम्भ से सन् 1313 ई. तक शासन करते रहे।

दक्षिण कोसल में कलचुरी राजवंश का शासन था, इसी समय बस्तर में छिंदक नागवंश का शासन था।

बस्तर के नागवंशी भोगवती पुरेश्वर की उपाधि धारण करते थे।

नृपतिभूषण(Nag vansh)

एररकोर्ट से प्राप्त अभिलेख में इसे इस वंश का संस्थापक बताया गया है।                                          

जिसमे शक़ संवत 945 अंकित है, अर्थात 1023 ई।

धारावर्ष(Nag vansh)

इसके सामंत चन्द्रादित्य ने बारसूर में तलाब व शिव मंदिर बनवाया।

इस वंश का दूसरा शिलालेख- बारसूर से प्राप्त हुआ है। बारसूर शिलालेख-1060 ई. ।

मधुरांतक देव(Nag vansh)

इस वंश का तीसरा शासक था.

इसके काल के विषय में प्राप्त राजपुर के समीप के ताम्रपत्र में नरबलि के लिखित साक्ष्य प्राप्त हुए हैं।

सोमेश्वरदेव(Nag vansh)

धारावर्ष का पुत्र।

सोमेश्वरदेव इस वंश के सबसे प्रतापि शासक थे।

उनका शासन काल 10 9 6 ई. से 1111 ई. तक था।

कलचुरी शासक जाज्वल्यदेव प्रथम से पराजित हुआ था।

1109 ई. शिलालेख ( नारायणपाल ) ,गुण्डमहादेवी इसकी माता थी।

सोमेश्वर देव ने अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया था।

छिंदक नागवंशो का महत्वपूर्ण केंद्र बारसूर था,इस काल में बारसूर में अनेक मंदिरों एवं तालाबो का निर्माण कराया गया, – मामा-भांजा मंदिर, बत्तीसा मंदिर, चंद्रादित्येश्वर मंदिर, आदि इस काल की ही देन है।

कन्हर देव(Nag vansh)

सोमेश्वर की मृत्यु के बाद ये सिंहासान पर बैठे, इनका कार्यकाल 1111 ई. – 1122 ई. तक था |

कन्हार्देव के बाद – जयसिंह देव, नरसिंह देव, कन्हरदेव द्वितीय, शासक बने |

जगदेव भूषण( नरसिंह देव )(Nag vansh)

 मणिकेश्वरी देवी (दंतेश्वरी देवी) का भक्त था।

हरिशचंद्र देव  – ( अंतिम शासक )(Nag vansh)

छिंदक नागवंश इस वंश के अंतिम शासक का नाम था हरिश्चन्द्र देव।

1324 ई. तक शासन किया ।

हरिशचंद्र देव की बेटी चमेली देवी ने अन्नमदेव से कड़ा मुकाबला किया था ,जो की “चक्रकोट की लोककथा ” में आज भी जीवित है।

इस वंश के अंतिम अभिलेख टेमरी से प्राप्त हुआ है , जिसे सती स्मारक अभिलेख भी कहा जाता है।

जिसमे हरिश्चंद्र का वर्णन है।

छिंदक नागवंश कल्चुरी वंश के समकालीन थे।

हरिश्चन्द्र को वारंगल(आंध्रप्रदेश) के चालुक्य अन्नभेदव (जो काकतीय वंश के थे) ने हराया और छिंदक नागवंश को समाप्त कर दिया।


यहाँ छत्तीसगढ़ इतिहास की सम्पूर्ण जानकरी प्रदान की जा रही है जो बहुत सारी अध्ययन सामग्री समाहित किये हुए है। जो इस प्रकार है –

Prehistoric Times

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Prehistoric Times – प्रागैतिहासिक काल में पूर्ण पाषाण काल, मध्य पाषाण काल, उत्तर पाषाण काल और नव पाषाण काल को शामिल किया गया है

Som vansh (सोमवंश) in Chhattisgarh

Som vansh (सोमवंश) in CG - Chhattisgarh history notes

इस लेख में छत्तीसगढ़ के Som vansh (सोमवंश) शासन के बारे में बताया गया है तथा साथ ही साथ यहाँ के शासकों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दी गया है साथ ही साथ यहाँ के शासकों के द्वारा युद्ध विजयों की जानकारी प्रदान की गई है।

Vedic period – वैदिक काल – CG History – Hindi Notes

Vedic period – वैदिक काल के बारे में जानकरी प्रदान की गई इसके साथ साथ ही इसमें रामायण काल तथा महाभारत के बारे में जानकारी प्रदान की गई है।इस काल में हुई महत्वपूर्ण घटनाओ के जानकारी भी प्रदान की गई है।

Naal Vansh – नल वंश

नल वंश के प्रमुख शासक, वंश के कुल पांच अभिलेख आदि के बारे में जानकारी प्रदान की गई है तथा साथ ही साथ शासकों की जानकारी प्रदान की गई है।

Faninaag vansh – फणिनाग वंश

छत्तीसगढ़ की एक शाखा फणिनाग वंश ने 9 वीं से 15वीं सदी तक कवर्धा के आस पास शासन किया । ये अपनी उत्पत्ति अहि एवं जतकर्ण ऋषि की कन्या मिथिला से मानते है, जिस वजह से इस वंश को अहि-मिथिला वंश भी कहते है। इस वंश के संस्थापक अहिराज थे।


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