Sharabhpuriya vansh – शरभपुरीय वंश – CG History – CG Hindi Notes
Chhattisgarh history notes – about sharabhpuriya vansh
- संस्थापक :- शरभराज – शरभपुर आधुनिक सारंगढ़ ( शरभपुरीय वंश का शासनकाल 475 से 590 तक था।)
- इनका शासन काल ईसा के 6 वीं शताब्दी में था ।
- इस वंश को अमरार्य / अमरज कुल भी कहा जाता था।
- इस वंश के लेख सम्बलपुर(ओडिशा) से प्राप्त अतः इतिहास कार सम्बलपुर को ही सरभपुर मानते है ।
- उत्तर कालीन गुप्त शासक भानुगुप्त के “एरण स्तंभलेख “ (गुप्त संवत 510 ई.) में शरभराज का उल्लेख मिलता है ।
क्षेत्र :- उत्तर – पूर्वी क्षेत्र (मल्हार , सारंगढ़ , रायगढ़, संबलपुर )
उप राजधानी :- श्रीपुर( सिरपुर )
मुख शासक :-
- शरभराज
- नरेंद्र:- शरभराज का उत्तराधिकारी ।
- इसके तीन ताम्रपत्र प्राप्त हुये है।
- ये तीन ताम्रपत्र पिपरदुला, कुरुद, रवां स्रोत हैं।
- उन्हें विष्णु के उपासक के रूप में उल्लेखित किया गया है।
- प्रसन्नमात्र:- सर्वाधिक प्रतापी राजा( विष्णु भक्त )
- इसने अपने नाम से प्रसन्नपुर नमक नगर की स्थापना की थी, जो निडिल नदी के किनारे स्थित था जिसका तादात्म्य मल्हार में स्थापित है।
- प्रसन्नमात्र इकलौता शरभपुरीय राजा है जिसके सोने के सिक्को खोज की गई है।
- इनमे वह प्रसन्नमात्र के रूप में उल्लेख किया गया है।
- सिक्के महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ क्षेत्र में उड़ीसा, चंदा में कालाहांडी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- प्रसन्नपुर (मल्हार) की स्थापना किया।
- गरुण, शंख ,चक्र आदि सिक्के चलाये।
- प्रवरराज प्रथम :- इसने राजधानी शरभपुर से श्रीपुर स्थापित की थी। प्रवरराज प्रथम के दो ताम्रपत्र ठाकुरदिया एवं मल्लार प्राप्त हुये है।
- सुदेव राज:- प्रवरराज प्रथम का उत्तराधिकारी ।इनके सात ताम्रपत्र प्राप्त हुये है जो इस राजवंश में सर्वाधिक है। सात ताम्रपत्र नन्हा , धमतरी, सिरपुर, आरंग, कउवतल, रायपुर, सारंगढ़ हैं।
- प्रवरराज-द्वितीय :-प्रवरराज द्वितीय इस वंश का अंतिम शासक था। सुदेवराज के सामंत इंद्रबल ने प्रवरराज-द्वितीय को मारकर पाण्डुवंश की नींव डाली । ( कौवाताल अभिलेख , महासमुंद )
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