तीजन बाई के बारे में – पदम् विभूषण – छत्तीसगढ़ हिंदी नोट्स
Teejan Bai – padma vibhushan – Chhattisgarh hindi notes
तीजन बाई (Teejan Bai) का जीवन
- तीजनबाई भारत के छत्तीसग़ढ राज्य के पंडवानी लोक गीत-नाट्य की पहेली महिला कलाकार है|
- तीजनबाई का जन्म 24 अप्रैल 1956 भिलाई के गाँव गनियारी में हुआ है।
- उनके पिता का नाम हुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती था।
- तीजनबाई छत्तीसगढ़ राज्य के अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत आती है|
- वह आपने पांच भाई बहन में सबसे बड़ी है|
- एक दिन ऐसा भी आया जब प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें सुना और तबसे तीजनबाई का जीवन बदल गया।
- तीजन बाई को अपनी उपलब्धियों का जरा सा भी गुरूर नहीं है।
- वह कहती हैं वो आज भी गांव की औरत है दिल में कुछ नहीं है …ऊंच-नीच, गरीब-अमीर कुछ नहीं, वो सभी से एक जैसे ही मिलती है और बात करती है ।
- इससे दुनियादारी की कुछ बातें सीखने तो मिलती है। ऎसे में कोई कुछ-कह बोल भी दे तब भी बुरा नहीं लगता।
- वो आज भी एक टेम बोरे बासी (रात में पका चावल पानी में डालकर) और टमामर की चटनी खाती है ।
- 12 साल की उम्र में उनकी शादी हुई।
- उन्होंने खुद के लिए एक छोटी सी झोपड़ी बना ली और अपने आप ही, पड़ोसियों से उधार लेने वाले बर्तन और भोजन करना शुरू कर दिया, फिर भी उसने अपना गायन कभी नहीं छोड़ा, जो अंततः उसके लिए भुगतान किया।
- वह कभी अपने पहले पति के घर नहीं गए और बाद में विभाजित हो गया ।
- बाद में तुकका राम के साथ उनकी शादी हो गई , जो उनके मंडली में एक हार्मोनियम वादक थे|
- उनके पांच बच्चे भी है। वह एक दादी भी है।
पांडवानी गायन का आरम्भ
- वह अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियाँ गाते सुनाते देखतीं और धीरे धीरे उन्हें ये कहानियाँ याद होने लगीं।
- उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया।
- 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन किया।
- उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएँ केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है।
- पहले पुरुष ही खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे।
- तीजनबाई वे पहली महिला थीं जो जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया।
- उन्हें पांडवानी गायन के लिए, एक महिला होने के नाते ‘पारधी’ जनजाति ने समुदाय से निष्कासित कर दिया।
तीजन बाई (Teejan Bai) को प्राप्त पुरस्कार
- भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के पंडवानी लोक गीत-नाट्य की पहली महिला कलाकार हैं।
- देश-विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन करने वाली तीजनबाई को बिलासपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है।
- सन् 1980 में उन्होंने सांस्कृतिक राजदूत के रूप में इंग्लैंड, फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी, टर्की, माल्टा, साइप्रस, रोमानिया और मारिशस की यात्रा की और वहाँ पर प्रस्तुतियाँ दीं।
- उन्हें वर्ष 1988 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और 2003 में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से अलंकृत की गयीं।
- उन्हें 1995 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार।
- 2007 में नृत्य शिरोमणि से भी सम्मानित किया जा चुका है।
- 2019 मे श्री राम नाथ कोविंद के द्वारा पद्मा विभूषण से सम्मानित किया गया।
तीजन बाई (Teejan Bai) द्वारा गयी जाने वाली पड़वानी गायन कला
- प्रदेश और देश की सरकारी व गैरसरकारी अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत तीजनबाई मंच पर सम्मोहित कर देनेवाले अद्भुत नृत्य नाट्य का प्रदर्शन करती हैं।
- ज्यों ही प्रदर्शन आरंभ होता है, उनका रंगीन फुँदनों वाला तानपूरा अभिव्यक्ति के अलग अलग रूप ले लेता है।
- कभी दुःशासन की बाँह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम की गदा तो कभी द्रौपदी के बाल में बदलकर यह तानपूरा श्रोताओं को इतिहास के उस समय में पहुँचा देता है
- जहाँ वे तीजन के साथ-साथ जोश, होश, क्रोध, दर्द, उत्साह, उमंग और छल-कपट की ऐतिहासिक संवेदना को महसूस करते हैं।
- उनकी ठोस लोकनाट्य वाली आवाज़ और अभिनय, नृत्य और संवाद उनकी कला के विशेष अंग हैं।
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