The Union – Part-5 – पांचवां भाग (अनुच्छेद 52 से 151) – संघ का शासन – Constitution Hindi Notes – Indian constitution book


मंत्रिपरिषद (COUNCIL OF MINISTERS)

‘राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद जिसका प्रधान ‘प्रधानमंत्री’ होता है (अनुच्छेद 74)।

कोई भी न्यायालय की जांच नहीं कर सकता कि क्या मंत्रियों ने राष्ट्रपति को कोई सलाह दी और यदि दी तो क्या दी।

अनुच्छेद 75 के तहत मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध क्या है –

  • प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति  राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर करेगा।
  • मंत्री, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद धारणप करेंगे।
  • मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी।।
  • किसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रपति तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिये गये प्रारूपों के अनुसार उसको पद की और गोपनीयता की शपथ दिलायेगा।
  • कोई मंत्री जो निरंतर छह माह की किसी अवधि तक संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा।
  • मंत्रियों के वेतन और भत्ते ऐसे होंगे जो संसद, विधि द्वारा, समय-समय पर अवधारित करे और जब तक संसद इस प्रकार अवधारित नहीं करती है तब तक ऐसे होंगे जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट है|

मंत्रिमंडल तथा मंत्रिपरिषद में अंतर –

  • 44वें संशोधन 1978 द्वारा अनुच्छेद 352 में ‘मंत्रिमंडल’ (Cabinet) शब्द का प्रयोग किया गया और यह प्रावधान किया गया कि राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा राष्ट्रपति के मंत्रिमंडल लिखित प्रस्ताव पर करेगा। साधारणतया मंत्रिपरिषद को मंत्रिमंडल के पर्यायवाची के रूप में प्रयोग किया गया है, परन्तु वास्तव में ये दो भिन्न-भिन्न शब्द हैं।
  • मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) में मंत्रियों की समस्त श्रेणियां आ जाती हैं। भारत के मूल संविधान में केवल मंत्रिपरिषद का ही वर्णन किया गया है। मंत्रिमंडल, मंत्रिपरिषद का ही एक छोटा भाग है तथा हम इसको मंत्रिपरिषद की आन्तरिक कमेटी (अन्तरिम कमेटी) भी कह सकते हैं।
  • जहां मंत्रिपरिषद में मंत्रिमंडल के सदस्य राज्य मंत्री, उपमंत्री तथा संसदीय सचिव चार प्रकार के मंत्री होते हैं. वहां मंत्रिमंडल अथवा कैबिनेट में केवल सबसे उच्च पदवी के सदस्य ही सम्मिलित होते हैं।
  • 91वां संविधान संशोधन विधेयक 2003 के तहत मंत्रिपरिषद का आकार सीमित कर दिया गया है। इसके तहत प्रधानमंत्री सदन के कुल सदस्य संख्या का केवल 15 प्रतिशत सदस्यों को ही मंत्री के रूप में नियुक्त कर सकता है|

प्रधानमंत्री

  • भारत की शासन प्रणाली में प्रधानमंत्री का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। वैसे संविधान के अनुच्छेद 54 के अनुसार राष्ट्रपति को मुख्य कार्यपालिका नियुक्त किया गया है; किन्तु व्यावहारिक रूप में मुख्य कार्यपालिका की शक्तियों का प्रयोग प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद करती है।
  • प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल का सभापति होता है। वह कैबिनेट की बैठकों का सभापतित्व करता है, वह कार्यसूची तैयार करता है और बैठकों में होने वाले वाद-विवाद पर नियन्त्रण रखता है।
  • यदि कोई मंत्री प्रधानमंत्री से सहमत न हो तो प्रधानमंत्री उसे त्यागपत्र देने के लिए कह सकता है। यदि कोई मंत्री प्रधानमंत्री के कहने के अनुसार त्यागपत्र न दे, तो वह राष्ट्रपति को सलाह देकर उसे पदच्युत करवा सकता है। वह स्वयं अपना त्यागपत्र देकर समस्त मंत्रिमंडल को अपदस्थ कर सकता है और दोबारा मंत्रिमंडल का निर्माण करते समय अपने विरोधी व्यक्तियों को मंत्रिमंडल से बाहर रख सकता है।
  • प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल का नेता होता है। दूसरे मंत्री निजी रूप से उसके प्रति उत्तरदायी होते हैं। वह उनको राज-कार्य में परामर्श देता है, अच्छे कार्य के लिए उत्साह बढ़ाता है तथा आवश्यकता पड़ने पर चेतावनी भी देता है। वह दूसरे मंत्रियों के कार्यों पर नियन्त्रण भी रखता है। वह सरकार के भिन्न-भिन्न विभागों तथा उसके कार्यों में ताल-मेल रखता है। वह मंत्रिपरिषद में एकता तथा सामूहिक उत्तरदायित्व स्थापित करता है।
  • राष्ट्रपति लोकसभा को प्रधानमंत्री की सलाह से ही भंग करता है, परन्तु यदि राष्ट्रपति यह समझे कि लोकसभा को भंग करना राष्ट्र के हित में नहीं तो वह प्रधानमंत्री की सलाह को मानने से इन्कार कर सकता है।
  • प्रधानमंत्री राष्ट्र का नेता है। आम चुनाव प्रधानमंत्री का चुनाव ही माना जाता है। प्रधानमंत्री अपने दल का नेता भी होता है, जिसके कारण चुनाव जीतने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री पर ही होती है। दल का चुनाव घोषणा-पत्र दल के नेता द्वारा ही तैयार किया जाता है।
  • शासन के सभी उच्च अधिकारियों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सिफारिश पर ही करता है। राज्यों के गवर्नर, विदेशों में भेजे जाने वाले राजदूत, संघीय लोक सेवा आयोग के सदस्य, सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश तथा विभिन्न आयोगों, शिष्टमंडलों के सदस्य आदि प्रधानमंत्री की इच्छानुसार ही नियुक्त किये जाते हैं।
  • गृह तथा विदेश नीति के निर्माण में प्रधानमंत्री का ही हाथ होता है। भारत की विदेश नीति क्या होगी, दूसरे देशों के साथ भारत के संबंध कैसे होंगे, इसका निर्णय भी प्रधानमंत्री ही करता है। युद्ध और शान्ति की घोषणा का अधिकार भी वास्तविक रूप में प्रधानमंत्री के ही पास है।

भारत का महान्यायवादी (Attorney General of India)

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 76 में भारत के महान्यायवादी की चर्चा की गयी है।
  • वह भारत सरकार का प्रथम विधि अधिकारी है। संविधानानुसार, भारत के महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी और वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेगा। उसकी वही अर्हताएं होनी चाहिए जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए अपेक्षित होती हैं।
  • वह ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा, जो राष्ट्रपति अवधारित करे। किंतु वह न तो सरकार का पूर्णकालिक विधि परामर्शी है और न ही सरकारी सेवक।
  • भारत सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह देना और ऐसे अन्य विधिक कार्यों का पालन करना जो राष्ट्रपति उसको समय-समय पर निर्देशित करे या सौंपे. और (2) उन कृत्यों का निर्वहन करना जो उसको इस संविधान अथवा तत्समय प्रवत्त अन्य विधि द्वारा प्रदान किये गये हों (अनुच्छेद 76(1)।
  • भारत का महान्यायवादी मंत्रिमंडल का सदस्य नहीं होता (इंग्लैंड में वह सदस्य होता है)। किंतु उसे किसी भी सदन में या उनकी समिति की बैठक में बोलने का अधिकार है, लेकिन उसे मत देने का अधिकार नहीं है (अनुच्छेद 88)। अपने पद के आधार पर उसे संसद सदस्यों जैसे ही विशेषाधिकार प्राप्त हैं (अनुच्छेद 105(4)।
  • महान्यायवादी को अपने कर्तव्यों के पालन में भारत के राज्यक्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा। महान्यायवादी भारत सरकार का पक्ष रखने के लिए किसी भी न्यायालय के समक्ष उपस्थित हो सकता है और न्यायिक कार्यवाही में भाग ले सकता है।

 

सरकारी कार्य का संचालन

  • अनुच्छेद 77 के मुताबिक भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्रवाई राष्ट्रपति के नाम से की हुई कही जायेगी।
  • अनुच्छेद 78 के तहत राष्ट्रपति को जानकारी देने आदि के संबंध में प्रधानमंत्री के कर्तव्य का उल्लेख किया गया है। इसके मुताबिक प्रधानमंत्री का कर्तव्य होगा कि वह संघ के कार्यकाल के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी मत्रिपरिषद के सभी विनिश्चय राष्ट्रपति को संसूचित करे; संघ के कार्यकलाप के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी जी जानकारी राष्ट्रपति मांगे वह दे; और किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने विनिश्चय कर दिया है किन मंत्रिपरिषद ने विचार नहीं किया है, राष्ट्रपति द्वारा अपेक्षा किये जाने पर परिषद के समक्ष विचार के लिए रखे।

 

संसद

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 79 में कहा गया है, ‘संघ के लिए एक संसद होगी, जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी, जिनके नाम राज्यसभा और लोकसभा होंगे।’ इस प्रावधान में स्पष्ट है कि (1) राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है और (2) देश में द्विसदनीय पद्धति के अपनाया गया है। भारत में 1919 में मॉन्ट-फोर्ड सुधारों के द्वारा द्विसदनीय प्रणाली लागू की गयी थी।
  • संविधान के अनुच्छेद 80 में राज्यसभा के गठन की चर्चा की गयी है। राज्यसभा के 238 सदस्यों का चुनाव संबंधित राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाता है।
  • चुनाव 6 वर्ष के लिए होता है, किन्तु प्रत्येक दो वर्ष में 1/3 सदस्यों की सदस्यता समाप्त हो जाती है। अनुच्छेद 333 के अंतर्गत 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा उन व्यक्तियों में से मनोनीत किये जाते हैं, जिन्हें कला, साहित्य, विज्ञान व समाज सेवा के क्षेत्र में विशेष ज्ञान और अनुभव प्राप्त हो। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं।
  • मूल सविधान में लोकसभा के सदस्यों की संख्या 500 निश्चित की गयी थी, लेकिन 1974 और 1987 में सदस्यों की संख्या में वृद्धि की गयी और अधिकतम सदस्यों की संख्या 552 को निश्चित किया गया। 91वाँ संविधान संशोधन 2003 के द्वारा वर्तमान लोकसभा के सदस्यों की संख्या 552 को ही 2026 तक स्वीकार कर लिया गया। उन सदस्यों की निर्वाचन की प्रक्रिया निम्न प्रकार की है –
    • 30 सदस्य राज्यों से प्रादेशिक निर्वाचन के द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा निर्वाचित होंगे।
    • 20 सदस्य संघ राज्य क्षेत्र से निर्वाचित होंगे।
    • अनुच्छेद 331 के अनुसार यदि राष्ट्रपति की दृष्टि में आंग्ल भारतीय समुदाय की पर्याप्त प्रतिनिधित्व नही मिला है, तो राष्ट्रपति आंग्ल भारतीय समुदाय के दो सदस्यों को मनोनीत कर सकता है।

लेकिन व्यावहारिक रूप में वर्तमान समय में लोकसभा के सदस्यों की संख्या 545 तक प्रभावी है जिसमें –

  • 530 सदस्य राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र द्वारा।
  • 13 सदस्य संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि।
  • 2 आंग्ल भारतीय समुदाय सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं।
  •  लोकसभा के गठन के प्रथम अधिवेशन की तिथि से 5 वर्ष के लिए होता है लेकिन प्रधानमंत्री की सलाह पर लोकसभा का विघटन 5 वर्ष से पहले भी हो सकता है। विशेष परिस्थितियों में लोकसभा की अवधि 1 वर्ष के लिए बढ़ायी जा सकती है।
  • लोकसभा के सदस्य भारत के नागरिकों द्वारा चुने जाते हैं, जो वयस्क हो गये है। 61वें सविधान संशोधन अधिनियम 1989 के पूर्व 21 वर्ष की आयु को वयस्क माना गया था, लेकिन इस संशोधन के द्वारा इसे घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया।

लोकसभा के पदाधिकारी


प्रोटेम स्पीकर (अस्थायी लोकसभाध्यक्ष)

  • नयी लोकसभा के गठन के नव निर्वाचित सदस्यों में से सबसे वरिष्ठ सदस्य को राष्ट्रपति प्रोटेम स्पीकर की शपथ दिलाता है। प्रोटेम स्पीकर नवनिर्वाचित सदस्यों को सदन की सदस्यता की शपथ दिलाता है।

लोकसभाध्यक्ष

  • नवनिर्वाचित सदस्य अपने सदस्यों में से एक सदस्य को लोसभाध्यक्ष का निर्वाचन करते हैं। लोकसभाध्यक्ष के रूप में चुने के बाद आगामी  लोकसभा के गठन के बाद उसके प्रथम अधिवेशन की प्रथम बैठक तक अपने पदों पर बना रहता है। वह अपने पद से निम्न प्रकार से वह मुक्त हो सकता है:
    • वह लोकसभा का सदस्य न रहे।
    • उपाध्यक्ष को त्यागपत्र देकर
    • लोकसभा के सदस्यों के बहुमत से संकल्प द्वारा पद से हटाये जाने पर।

कार्य व शक्तियाँ:

लोकसभाध्यक्ष अपने पद पर रहते हुए निम्न कार्यों को सम्पादित करता है:

  • सदन की व्यवस्था, कार्यवाही आदि का संचालन तथा गणपूर्ति के अभाव में सदन की बैठक को स्थगित करना।
  • सदन में असंसदीय तथा अनावश्यक विचार-विमर्श को रोकना। सदन के सीमा क्षेत्र के अन्तर्गत सदन के किसी सदस्य की गिरफ्तारी या उसके विरुद्ध कार्यवाही करने की अनुमति देना।
  • किसी व्यक्ति को सदन की अवमानना करने या उसके विशेषाधिकार के उल्लंघन करने पर सदन द्वारा किये गये निर्णयों को लागू करना।
  • लोकसभा द्वारा पारित विधेयक को प्रमाणित करना तथा किसी भी विधेयक के धन विधेयक के रूप में घोषित करना।
  • लोकसभा व राज्यसभा के संयुक्त बैठकों की अध्यक्षता करना।

लोकसभा उपाध्यक्ष

  • लोकसभा के सदस्य अपने सदस्यों में से उपाध्यक्ष का चुनाव करते है। उपाध्यक्ष के लिए वही प्रक्रिया अपनायी जाती है, जो प्रक्रिया लोकसभा अध्यक्ष के लिए अपनायी जाती है। लोकसभाध्यक्ष के अनुपस्थित रहने पर कार्यवाही का संचालन लोकसभा उपाध्यक्ष करता है।

राज्यसभा के पदाधिकारी

  • सभापतिः उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है, जो राज्यसभा की कार्यवाही के संचालन तथा सदन में अनुशासन बनाये रखने के लिए उत्तरदायी होता है। जब उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के दायित्व का निर्वाह करता है तब वह राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य नहीं करता है, बल्कि सभापति का दायित्व उपसभापति निर्वाह करेंगे।
  • उपसभापतिः सदन अपने सदस्यों में से किसी एक सदस्य को उपसभापति चुनेगी।
  • यदि सभापति और उपसभापति दोनों अनुपस्थित हैं, तो राज्यसभा सभा के कार्यों का निर्वहन वह सदस्य करेगा, जिसे राष्ट्रपति निर्देशित करता है।

कार्य व शक्तियां

  • संसद के दोनों सदनों को सामान्यतः समान कार्य व शक्तियां प्रदान की गयी है। लेकिन धन विधेयक के संबंध में राज्यसभा की शक्तियां लोकसभा की तुलना में कम है, लेकिन राज्यसभा को कुछ ऐसी शक्ति संविधान द्वारा प्रदान की गयी हैं, जो लोकसभा को प्राप्त नहीं है।
  • राज्यसूची के विषयों पर कानून बनाने की संसद की शक्ति – अनुच्छेद 249: यदि राज्यसभा उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से यह संकल्प पारित कर दे कि राष्ट्रीय हित के लिए आवश्यक है कि संसद राज्य सूची में दिये गये विषयों पर कानून बनाये, तो संसद को उस विषय पर कानून बनाने की शक्ति मिल जाती है। इस प्रकार बनाया गया कानून केवल एक वर्ष तक प्रभावी रह सकता है, लेकिन राज्यसभा पुनः संकल्प पारित करके एक वर्ष के समय को और बढ़ा सकती है।
  • नयी अखिल भारतीय सेवा की स्थापना अनुच्छेद 312: अनुच्छेद 312 के अनुसार राज्यसभा अपने उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत से यह संकल्प पारित कर दे कि राष्ट्रीय हित में यह आवश्यक है कि संघ और राज्यों के लिए आवश्यक है तो संसद नयी अखिल भारतीय सेवा की स्थापना कर सकती है।

सांसदों की योग्यताएं

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 84 में संसद का चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति की अर्हताओं का वर्णन इस प्रकार किया गया है-

  • वह भारत का नागरिक हो।
  • वह राज्यसभा के लिए कम-से-कम तीस वर्ष तथा लोकसभा के लिए
  • कम-से-कम 25 वर्ष की आयु का हो।
  • वह भारत अथवा राज्य सरकार के अंतर्गत किसी लाभप्रद पद पर काम न करता हो|
  • वह दिवालिया न हो।
  • वह पागल न हो।
  • वह संसद द्वारा निर्मित किसी विधि के अधीन विवर्जित न हो (अनुच्छेद 102)।
  • अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए सुरक्षित सीटों पर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार उस जाति के प्रमाणित सदस्य हों। ऐसा व्यक्ति भारतीय क्षेत्र में किसी भी स्थान से उस जाति का सदस्य हो सकता है।
  • लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार भारत के किसी भी चुनाव क्षेत्र से पंजीकृत मतदाता हों।
  • राज्यसभा का चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार ‘सामान्यतया उस राज्य का निवासी हो’, जिस राज्य से वह चुनाव लड़ना चाहता है।
  • उसने किसी अपराध के लिए 2 वर्ष से अधिक सजा न पाई हो तथा उस जेल से छूटे हुए पांच वर्ष से अधिक हो चले हों।

संसद के सत्र

सामान्यतया वर्ष में संसद के तीन सत्र होते हैं

  • बजट सत्र ( फरवरी – मई)
  • वर्षाकालीन सत्र (जुलाई – सितम्बर)
  • शीतकालीन सत्र (नवम्बर – दिसम्बर)

राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन को अधिवेशन के लिए आहूत करता है। एक वर्ष में दो बार संसद का अधिवेशन बुलाया जाना आवश्यक हैं।

 

स्थगन, सत्रावसान व विघटन 

  • संसद के प्रथम अधिवेशन और सत्रावसान या विघटन के बीच की अवधि को ‘सत्र’ कहते हैं।
  • सदन की कार्यवाही को कुछ घण्टे या दिन या सप्ताह के लिये स्थगित करने को स्थगन कहते हैं।
  • विघटन केवल लोकसभा का होता है। सूचनाएं, प्रस्ताव और संकल्प समाप्त हो जाते हैं।
  • स्थगन का किसी कार्यवाही पर भी प्रभाव नहीं पड़ता। लोकसभा के विघटन से उसमें लम्बित सभी विधेयक, सूचनाएं, प्रस्ताव समाप्त हो जाते हैं।
  • जो विधेयक राज्यसभा में प्रारम्भ हए और लोकसभा को भेजे गये तथा वे विधेयक जो लोकसभा में प्रारम्भ हुए और राज्यसभा में भेजे गये थे और विघटन की तारीख को राज्यसभा में लम्बित थे, समाप्त हो जाते हैं।
  • किन्तु ऐसे विधेयक समाप्त नहीं होते जो राज्यसभा में लम्बित हैं, किन्तु सदन द्वारा पारित नहीं किये गये होते हैं।
  • यदि संसद का कोई सदस्य अनुमति के बिना लगातार 60 दिन से अधिक सदन से अनुपस्थित रहता है, तो उसका स्थान रिक्त घोषित किया जा सकता है।

 

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