The Union – Part-5 – पांचवां भाग (अनुच्छेद 52 से 151) – संघ का शासन – Constitution Hindi Notes – Indian constitution book


कार्यपालिका

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति


राष्ट्रपति (President)(अनुच्छेद 52-62, 71-73,123)

  • संसदीय प्रणाली में दो तरह के प्रमुख्य होते हैं – राज्यों का प्रमुख एवं शासन का प्रमुख |  भारत में संसदीय प्रणाली अपनायी गई है, अतः यहाँ भी दो तरह के प्रधान है|
  • राष्ट्रपति राज्यों का प्रधान है तथा प्रधानमंत्री शासन का |
  • भारतीय संविधान के अनुसार 52 में कहा गया है की भारत का एक राष्ट्रपति होगा और अनुच्छेद 53 के अनुसार ‘संघ की सम्पूर्ण कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी, जिसका प्रयोग वह खुद या अपने अधीनस्थों के माध्यम से करेगा, अर्थात वह मंत्रीपरिषद् की सलाह से कार्य करेगा |’

राष्ट्रपति का चुनाव (Election procedure of the president of india)

  • भारत के राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप अनुच्छेद 54 के अनुसार एक निर्वाचक मंडल द्वारा 5 वर्ष के लिए किया जाता है, जिसमे संसद के दोनों सदनों तथा राज्यों की विधानसभों के केवल निर्वाचित सदस्य भाग लेते है |
  • निर्वाचन अनुपातिक प्रतिनिध्त्वि पद्धाति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के द्वारा होता है | अनुच्छेद 55 के अनुसार यह सुनाचित किया गया है कि निर्वाचन में भिन्न भिन्न राज्यों के प्रतिनिद्दित्व  प्रत्येक राज्य की जनसँख्या और विधानसभा  के लिए निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या के अनुसार एकरूपता होगी |
  • राष्ट्रपति पद के लिए चुनव लड़ने वाले व्यक्ति में निम्न लिखित योग्यता होनी चाहिए |
    • वह भारत का नागरिक हो |
    • वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चूका हो |
    • वह लोक सभा का सदस्य चुने जाने की योग्यता रखता हो |
    • वह संघ या राज्य या स्थानीय सरकार के अधीन किसी लाभप्रद पद पर कार्यरत न हो | राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति ,राज्यपाल व मत्रियों के लिए चुनाव लड़ने से पूर्व त्यागपत्र देना आवश्यक नहीं, किन्तु वह संसद विधान मंडल का सदस्य नहीं हो सकता |
    • उसे निर्वाचक मंडल के कम से कम 50 मतदाताओं द्वारा प्रस्तवित एवं 50 अन्य मतदाताओं द्वारा समर्थित होना चाहिए|
  • राष्ट्रपति के निर्वाचन से सम्बंधित सभी विवादों की जाँच और विनिश्चय (अनुच्छेद 71 ) उच्चतम न्यायलय द्वारा किया जाता है |
  • निर्वाचन को सिर्फ निर्वाचक या  प्रत्याशी ही चुनौती दे सकता है | राष्ट्रपति का निर्वाचन न्यायालय द्वारा सवैध घोषित किये जाने पर उसके द्वारा पद की शक्तियों के प्रयोग में किये गए कार्य अमान्य होंगे|

राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया (Impeachment process of Indian president)

  • राष्ट्रपति को संविधान के उल्लंघन के आधार पर केवल महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है (अनुच्छेद 61) |
  • ऐसा प्रस्ताव लोकसभा या राज्यसभा में पेश हो सकता है | महाभियोग प्रस्ताव पेश करने का नोटिस इस सदन के एक -चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर द्वारा 14 दिन पहले देना जरूरी है |

राष्ट्रपति की पदावधि (Tenure of Indian president)

  • राष्ट्रपति पदग्रहण की तारीख से 5 वर्ष की अवधि तक अपने पद पर बना रह सकता है | लेकिन इस 5 वर्ष की अवधि के पूर्व भी वह उपराष्ट्रपति की अपना त्याग पत्र दे सकता है या उसके द्वारा संविधान का अतिक्रमण करने पर महाभियोग प्रक्रिया के द्वारा हटाया जा सकता है |
  • सामान्य परिस्थियों में राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने से पूर्व ही चुनाव संपन्न हो जाने चाहिए , किन्तु किसी कारण से ऐसा संभव न हो, तो वर्तमान राष्ट्रपति तब तक पद पर रहेंगे |

राष्ट्रपति के वेतन और भत्ते (Salary and wages Indian president)

  • राष्ट्रपति का वेतन बढ़ाकर 1,50,000 से 500000 रूपये प्रतिमाह कर दिया गया है |

राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया (Election procedure of the president of India)

  • राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है , जिसके सदस्य होते है –
    • संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य, तथा
    • राज्यों की विधानसभों के निर्वाचित सदस्य(संसद के मनोनीत सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेने का अधिकार नहीं है)
  • 70वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में दिल्ली व पांडिचेरी विधानसभा के निर्वाचित सदस्य भाग लेंगे |
  • 11वें संविधान संशोधन,1961 द्वारा यह व्यवस्था कर दी गई है कि निर्वाचक मंडल में किसी स्थान के रिक्त होते हुए भी राष्ट्रपति का चुनाव कराया जा सकता है |
  • प्रत्येक राज्य की जनसँख्या को उस राज्य की विधानसभा की कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या से विभाजित किया जाता है और जो भागफल होता है ,उसे पुनः 1000 से विभाजित किया जाता है | ऐसा करने के बाद जो अंतिम भागफल आता है, वह प्रत्येक विधायक मत का मूल्य होता है |
  • पुरे भारत की समस्त विधानसभाओं के सदस्यों के कुल मतों की संख्या को संसद के दोनों सदनों के कुल निर्वाचित सदस्यों की संख्या से विभाजित करने के बाद जो भागफल आता है, वही प्रत्येक संसद सदस्य के मत का मूल्य होता है |

president of India

  • राष्ट्रपति चुनाव में एक बार को छोड़कर सभी बार प्रथम गणना में ही निर्धारित संख्या उम्मीदवार ने प्राप्त कर ली है | 1969 के राष्ट्रपति चुनाव में पहली और अंतिम बार दूसरे दौर की मतगणना करनी पड़ी थी , जब दूसरे के बाद ही वी. वी. गिरि ने निर्धारित कोटे को प्राप्त किया था |

राष्ट्रपति की शक्तियां (Power of president of India)

  • संविधान में राष्ट्रपति की अनेक शक्तियों का उल्लेख किया गया है | अध्ययन की सुगमता की दृष्टि राष्ट्रपति की शक्तियों को निम्नलिखित शीर्षकों में बांटा जा सकता है |
  • भारतीय संघ की सभी कार्यकारी शक्तियां राष्ट्रपति [विधायी शक्तियां (Legislative powers), कार्यपालिका शक्तियां (Executive powers), वित्तीय शक्तियां (Financial powers), न्यायिक शक्तियां (Judicial powers), आपातकालीन शक्तियां (Emergency powers)] निहित है|
  • अनुच्छेद 74 के अनुसार मंत्रिपरिषद की मदद से राष्ट्रपति इनके कार्यों पर नियंत्रण रखते है| इनके कार्यों का बंटवारा अनुच्छेद 77 के अनुसार राष्ट्रपति ही करते है, व्यव्हार में सलाह प्रधानमंत्री देते है कि कार्य का बंटवारा कैसे हो |
  • अनुच्छेद 78 के अनुसार, प्रधानमंत्री का दायित्व है की वह राष्ट्रपति को मत्रिमंडल द्वारा संघ प्रशासन तथा व्यवस्थापन सम्बन्धी प्रस्तावों की सूचना दें |  राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को किसी  ऐसे मामले पर विचार करने के लिए कह सकते है जिसके बारे में किसी मंत्री ने घोषणा की हो,परन्तु मत्रिमंडल ने विचार न किया  हो |
  • राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों, नियंत्रक व महालेखा परीक्षक, महान्यावादी, सर्वोच्च व उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों व  अन्य  न्यायाधीशों ,राज्यपालों,विदेशों में राजदूतों ,संघ लोक सेवा आयोग के सभापति व सदस्यों, मुख्य चुनाव आयुक्त व अन्य आयोगों के अध्यक्षों व सदस्यों की नियुक्ति करते हैं |

राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां [Legislative powers of President of india]

  • संविधान के अनुच्छेद 58(1)(2) के अंतर्गत राष्ट्रपति संसद का अधिवेशन आहूत व स्थगित कर सकता है , लोकसभा को भांग कर सकता है, दोनों सदनों में अगर किसी साधारण विधेयक पर गतिरोध हो तो अनुच्छेद 108 के अधीन संसद का संयुक्त अधिवेशन बुला सकता है |
  • राष्ट्रपति साधारण विधेयक को पुर्नविचार के लिए लौटा सकता है | संविधान में यह नहीं बताया की राष्ट्रपति कितने समय के अंदर विधेयक को स्वीकृति दे | कई बार राष्ट्रपति की स्वीकृति न मिलने पर विधेयक स्वतः समाप्त हो जाते है | इसे जेबी वीटो कहते है | ऐसा तीन बार हुआ है |
  • कुछ विशेष प्रकार के विधेयक को संसद में पेश करने से पूर्व राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति लेनी पड़ती है , जैसे नए राज्यों का निर्माण या वर्तमान राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन (अनुच्छेद 2), धन-विधेयक (अनुच्छेद 110) आदि |
  • अनुच्छेद 123 (1) के अंतर्गत संसद के विश्रान्तिकाल में राष्ट्रपति के पास अध्यादेश जारी करने की शक्ति मौजूद है | इसका प्रभाव संसदीय अधिनियम की तरह होता है |

राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियां (Financial Powers of President)

  • संविधान के अनुच्छेद 112 के अनुसार राष्ट्रपति वार्षिक वित्तीय व्यौरा वित्तमंत्री के माध्यम से लोकसभा में पेश करते है | धन विधेयक पर राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य होती है | राष्ट्रपति प्रतिवर्ष लेखा परीक्षक की रिपोर्ट ,वित्त आयोग की सिफारिशें संसद को पेश करते है | आकस्मिक निधि पर उनका नियंत्रण होता है |
  • वह संसद में पूरक ,अतिरिक्त और लेखानुदान की मांग कर सकता है | वित्त आयोग के चेयरमैन व सदस्यों की नियुक्ति करके आयोग का गठन भी करता है |

राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां [Judicial powers of president of India]

  • राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश व अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते हैं| संविधान के अनुच्छेद 72 के अनुसार उन्हें किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रतिलंबन , विराम  या परिहार करने अथवा दंडादेश के निलंबन,परिहार या लघुकरण की शक्ति प्राप्त है | सेना न्यायलय द्वारा दिए गए दंड भी इसमें शामिल है |  अगर किसी व्यक्ति को मृत्युदंड दिया गया हो, तो वे उसे क्षमादान दे सकते हैं या दंड के स्वरुप में परिवर्तन भी कर सकते हैं |
  • अनुच्छेद 143 के अनुसार राष्ट्रपति किसी भी ऐसे सार्वजनिक महत्व का प्रश्न उच्चतम न्यायलय को उसकी राय के लिए भेज सकते हैं , जिसमें कानून और तथ्यों का भी प्रश्न उठा सकते हैं |

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां (Emergency Powers of president of India)

राष्ट्रपति को तीन प्रकार की आपातकालीन शक्तियां प्राप्त है :

  • सामान्य या राष्ट्रीय आपात स्थिति (अनुच्छेद 352)
  • राज्यों में राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356 ), तथा
  • वित्तीय आपातस्थिति (अनुच्छेद 360)

राष्ट्रीय आपात स्थिति (National Emergency)

देश में युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की संभावना अथवा स्थिति पैदा होने पर राष्ट्रपति सम्पूर्ण भारत अथवा किसी भाग में सामान्य आपात स्थिति लागु कर सकते है | संविधान के 44वे संशोधन के द्वारा संवैधानिक प्रावधानों में कई परिवर्तन किये गए | ये इस प्रकार हैं-

    • राष्ट्रपति इस प्रकार की घोषणा तभी करेंगे, जब मंत्रिमंडल लिखित रूप से राष्ट्रपति को ऐसा परामर्श दे|
    • आतंरिक अशांति के आधार पर ऐसी घोषणा नहीं हो सकती|
    • इस प्रकार की घोषणा का अनुमोदन संसद एक मास के अंदर करेगी | यह अनुमोदन दोनों सदनों में पृथक पृथक सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत तथा उपस्थिति एवं वोट देने वालों के 2/3 बहुमत से  किया जायेगा |
    • इस प्रकार की घोषणा का अनुमोदन संसद प्रत्येक छह मास बाद करेगी अन्यथा घोषणा स्वतः समाप्त हो जाएगी|
    • आपातकाल की घोषणा पर विचार करने के लिए लोकसभा के  1/10 सदस्य संसदका का  का विशेष अधिवेशन बुलाने का अनुरोध कर सकते है |
    • ऐसी सूचना मिलने  या अनुरोध किये जाने  पर 14 दिन के अंदर संसद की विशेष बैठक बुलाई जाएगी | आपातकाल  की घोषणा की न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है|

नोट- इस प्रकार की घोषणा 1962 (चीनी आक्रमण के समय), 1965 व 1971(पाकिस्तानी आक्रमण के समय)  तथा 1975 (आतंरिक अशांति के भय के आधार पर) में की गयी थी |

घोषणा का प्रभाव (Effects of Proclamation)

  • राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा के फलस्वरूप देश का संघात्मक स्वरुप एकात्मक बन जाता है| संसद तीनों सूचियों पर कानून बना सकती है, मत्रिमंडल राज्यों को कार्यपालिका आदेश जारी कर सकता है |
  • यदि आपात स्थिति को घोषणा युद्ध या बाह्य आक्रमण के कारण की गई हो, तो अनुच्छेद 19 में प्रदप्त स्वतंत्रतएं स्वतः निलंबित हो जाती है; किन्तु  अगर आपात स्थिति की घोषणा अनुच्छेद 359 के सन्दर्भ में की जाये, तो राष्ट्रपति को आदेश जारी करना होगा की कौन – कौन से अधिकारों को निलंबित किया जा रहा है |  युद्ध , बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के आधार पर उद्घोषित आपात स्थिति अनुच्छेद 359 से जुडी है|
  • अनुच्छेद 20 व 21 को निलंबित नहीं किया जा सकता |
  • राष्ट्रपति आदेश द्वारा यह तय कर सकते है की संघ व राज्यों के बीच आय का वितरण किस आधार पर होगा| ऐसा आदेश शीघ्रातिशीघ्र संसद के दोनों सदनों के सामने रखना पड़ता है |
  • भारत के किसी भाग भी में आपात स्थिति लागु रहने पर संघ सरकार की आपात शक्ति सारे देश पर लागु होगी|

राज्यों में राष्ट्रपति शासन

संविधान के अनुच्छेद 355 के अनुसार संघीय सरकार का यह दायित्व है कि वह राज्य की बाहरी आक्रमण व आंतरिक अशांति से रक्षा करे तथा यह भी सुनिश्चित करे कि उस राज्य का काम संविधान की धाराओं के अनुसार चल रहा है। राज्यपाल के प्रतिवेदन पर या अन्यथा, यदि किसी राज्य का काम संविधान की धाराओं के अनुसार न चल रहा हो तो उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।

  • अनुच्छेद 356 के अंतर्गत की गयी घोषणा के निम्नलिखित परिणाम होते हैं –
    • राज्य की विधायी शक्ति केन्द्रीय संसद में निहित हो जाती है।
    • राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में राज्य के कार्यपालिका कार्यों का निष्पादन करता है।
    •  राष्ट्रपति उच्च न्यायालय की शक्ति को छोड़कर राज्य की अन्य समस्त शक्तियां अपने हाथ में ले सकता है।
    • अगर लोकसभा की बैठक न हो रही हो तो राष्ट्रपति राज्य की संचित निधि से व्यय के आदेश दे सकता है।
    • अनुच्छेद 20 व 21 को छोड़कर राष्ट्रपति किसी मौलिक अधिकार को निलम्बित करने का आदेश दे सकता है।
  • एस.आर. बोम्मई मुकदमा व अनुच्छेद 356: इस मुकदमे का फैसला सर्वोच्च न्यायालय ने 11 मार्च, 1994 को दिया। इसका सीधा संबंध राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 356 के प्रयोग से है। न्यायालय ने 6-3 बहुमत से यह फैसला किया कि –
    • राष्ट्रपति की यह शक्ति असीमित नहीं है।
    • इस संदर्भ में सरकारिया आयोग की सिफारिशें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। उन पर गंभीरता से विचार करना जरूरी है।
    • ऐसी घोषणा का पुनरावलोकन हो सकता है अर्थात् यह न्याय-योग्य है।
    • मंत्रिमंडल की बैठक, जिसमें ऐसी घोषणा का निर्णय लिया गया,की कार्यवाही संबंधी परिपत्र न्यायालय मंगा सकते हैं।
    • न्यायालय उद्घोषणा के औचित्य की जांच कर सकते हैं।
    • इस प्रकार की घोषणा के द्वारा संसद अनुमोदन से पूर्व राज्य विधानसभा का विघटन नहीं किया जा सकता।
    • घोषणा के असंवैधानिक सिद्ध होने पर विधानसभा को न्यायालय द्वारा पुनर्जीवित किया जा सकता है।

वित्तीय आपातस्थिति (Financial Emergency)

अनुच्छेद 360 के अनुसार राष्ट्रपति वित्तीय आपातस्थिति की घोषणा कर सकते हैं; अगर उन्हें यह विश्वास हो जाये कि भारत अथवा उसके किसी भाग में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है, जिससे उसकी वित्तीय स्थिरता एवं साख को खतरा है। इस प्रकार की घोषणा का संसद 2 मास के अन्दर अनुमोदन करती है। इसे जारी रखने की सीमा निश्चित नहीं है। आज तक इस प्रकार की आपातस्थिति कभी लागू नहीं की गयी।

  • धन-विधेयक से भिन्न विधेयक की स्थिति में राष्ट्रपति की स्वीकृति की कोई समय-सीमा तय नहीं है। ऐसे में राष्ट्रपति जेबी विटो का प्रयोग कर सकता है। 1986 में राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक पर इस शक्ति का प्रयोग किया था।
  • राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 72 के अन्तर्गत क्षमादान की शक्ति है। इसके अन्तर्गत वह दोष-सिद्ध व्यक्ति के दण्ड को क्षमा, उसका लघुकरण, परिहार, विराम और प्रविलंबन कर सकता है। राष्ट्रपति को पद एवं गोपनीयता की शपथ सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमूर्ति दिलाता है।
  • भारत में राष्ट्रीय आपात की पहली उद्घोषणा भारत-चीन युद्ध के समय 26 अक्टूबर, 1962 को हुई, जिसे 10 जनवरी, 1968 को वापस लिया गया। दूसरी उद्घोषणा (भारत-पाक युद्ध) 3 दिसम्बर, 1971 और तीसरी उद्घोषणा ‘आन्तरिक अशांति’ के आधार पर 25 जून, 1975 को की गयी। तीसरी उद्घोषणा 21 मार्च, 1977 को एक साथ वापस ली कई।
  • 44वें संवैधानिक संशोधन (1978) के अन्तर्गत ‘आन्तरिक अशांति’ शब्द की जगह ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द को प्रतिस्थापित किया गया।

उपराष्ट्रपति (अनुच्छेद 63-70)

  • संविधान के अनुच्छेद 63 के अन्तर्गत उपराष्ट्रपति पद की भी व्यवस्था की गयी है। जब किसी कारण से राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाता है तब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति का पद सम्भाल लेता है; परन्तु वह अधिक से अधिक 6 महीने तक ही राष्ट्रपति के पद पर रह सकता है; क्योंकि 6 महीने के अन्दर नये राष्ट्रपति का चुनाव होना आवश्यक है। भारत में उपराष्ट्रपति अमेरिका के उपराष्ट्रपति की तरह (उच्च सदन) राज्यसभा का अध्यक्ष भी है।

योग्यताएं

  • उपराष्ट्रपति के पद के लिए वही व्यक्ति चुनाव लड़ सकता है, जिसमें निम्नलिखित योग्यताएं हों:
    • वह भारत का नागरिक हो।
    • वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
    • वह राज्यसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो।
    • वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी लाभदायक पद पर आसीन न हो; परन्तु राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति राज्यपाल तथा मंत्री आदि के पद लाभदायक नहीं समझे जायेंगे|
    • वह सासंद अथवा राज्य विधानमंडल का सदस्य के किसी सदन का सदस्य न हों| संसद अथवा राज्य विधानसभा का सदस्य चुनाव तो लड़ सकता है,परन्तु चुने जाने पर उसे संसद अथवा राज्य विधानमंडल की सदस्यता छोड़नी पड़ती है|
  • 5 जून, 1997 को राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश जारी करके उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के लिए जमानत की राशि 15 हजार रुपये कर दी। इस अध्यादेश के द्वारा ही उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार का नाम संसद के 20 सदस्यों द्वारा प्रस्तावित तथा 20 सदस्यों
    द्वारा अनुमोदित होना चाहिए।
  • उपराष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक मंडल द्वारा होता है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के सदस्य सम्मिलित होते हैं। मनोनीत सदस्यों को भी उपराष्ट्रपति के चुनाव में मत डालने का अधिकार है, जबकि राष्ट्रपति के चुनाव में उन्हें ऐसा अधिकार नहीं है। उसका चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा होता है और गुप्त मतदान की रीति अपनाई जाती है।
  • उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तिथि से पांच वर्ष तक की अवधि तक अपने पद पर रहता है। उपराष्ट्रपति अपना त्याग-पत्र राष्ट्रपति को देता है। डॉ. राधाकृष्णन को 1957 में इस पद के लिए दुबारा निर्वाचित किया गया था|
  • उपराष्ट्रपति को पांच वर्ष के अवधि से पूर्व भी हटाया जा सकता है, यदि उपराष्ट्रपति अपनी शक्तियों का दुरूपयोग करे तो उसे राज्यसभा के सदस्यों द्वारा दो तिहाई बहुमत से पारित एक प्रस्ताव द्वारा, जिसे लोकसभा द्वारा भी स्वीकृत कर दिया जाये, पदच्युत किया जा सकता है।

वेतन तथा भत्ते

  • उपराष्ट्रपति को उपराष्ट्रपति होने के नाते कोई वेतन नहीं मिलता। 4 अगस्त, 1998 को संसद में उपराष्ट्रपति का वेतन 14,500 रुपये से बढ़ाकर 40 हजार रुपये मासिक कर दिया गया था। वर्तमान में उपराष्ट्रपति का वेतन 4,00,000 रुपये मासिक कर दिया गया है। यह वेतन उपराष्ट्रपति को राज्यसभा के सभापति होने के नाते दिया जाता है।
  • जब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति-पद पर कार्य करता है, तब उसे राष्ट्रपति के पद से सम्बन्धित वेतन तथा भत्ते और अन्य सुविधाएं मिलती हैं।
  • उपराष्ट्रपति राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में इसके अधिवेशनों की अध्यक्षता करता है। उसे साधारणतया मत देने का अधिकार नहीं है; परन्तु उसे निर्णायक मत देने का अधिकार है।
  • उपराष्ट्रपति के रूप में वह कोई कार्य नहीं करता; बल्कि उसका कार्य उसी समय आरम्भ होता है जब राष्ट्रपति की मृत्यु हो जाये या वह त्यागपत्र दे दे या उसे महाभियोग द्वारा हटा दिया जाये या किसी और कारण से राष्ट्रपति का पद खाली हो जाये। जब राष्ट्रपति का पद खाली होता है तब उपराष्ट्रपति उसका पद सम्भाल लेता है। जब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के पद पर कार्य करता है, तब वह राज्यसभा की अध्यक्षता नहीं करता। उपराष्ट्रपति अधिक से अधिक 6 महीने तक राष्ट्रपति के पद पर कार्य कर सकता है; क्योंकि संविधान के अनुसार नये राष्ट्रपति का चुनाव 6 महीने के अन्दर-अन्दर हो जाना चाहिए।
  • संविधान की धारा 75(1) के अनुसार प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और फिर प्रधानमंत्री की सिफारिश पर वह अन्य मंत्रियों को नियुक्त करेगा|
  • जिस प्रकार इंग्लैंड में सम्राट को हाउस ऑफ कॉमन्स के बहुदलीय नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त करना पड़ता है, उसी प्रकार भारत में राष्ट्रपति को उस व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त करना पड़ता है, जिसको लोकसभा ।
    बहुमत प्राप्त हो।
  • कुछ परिस्थितियों में राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की नियुक्ति स्वेच्छा से करने का अवसर मिल सकता है। पहली परिस्थिति तब उत्पन्न हो सकती है, जब बहुमत प्राप्त दल का नेता त्याग-पत्र दे दे और उस दल का कोई
    निश्चित नेता न रहे या दो नेता समान रूप से प्रभावशाली हों।
  • प्रधानमंत्री को मंत्रियों की सूची तैयार करते समय बहुत-सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। मंत्री संसद के किसी एक सदन के सदस्य अवश्य होने चाहिए और यदि किसी ऐसे व्यक्ति को मंत्री बना दिया जाये, जो
    संसद का सदस्य न हो, तो उसे 6 महीने के अन्दर-अन्दर संसद का सदस्य बनना पड़ता है।
  • संविधान में यह भी व्यवस्था की गयी है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप में लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगी, राष्ट्रपति जब चाहे मंत्रिपरिषद को नहीं हटा सकता। मंत्रिपरिषद तब तक अपने पद पर आसीन रहती है, जब तक उसे लोकसभा में बहुमत का विश्वास प्राप्त रहे।
  • किसी भी मंत्री को राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार नहीं हटा सकता। मंत्री को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सिफारिश से ही हटा सकता है। मोरारजा देसाई को राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की सिफारिश पर हा हटाया था।

Important points

  • Indian constitution book
  • Constitution book

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