Veer Gundadhur (वीर गुण्डाधूर)
गुण्डाधूर (Veer Gundadhur) का जन्म बस्तर के नेतानार नामक गाँव में हुआ था.
अंग्रेज सरकार ने वहाँ बैजनाथ पण्डा नाम के एक व्यक्ति को दीवान के पद पर नियुक्त किया था.
दीवान बैजनाथ पण्डा आदिवासियों का शोषण करता और उन पर अत्याचार करता था.
बस्तर के लोग त्रस्त थे. बस्तर के अधिकांश लोगों की आजीविका वन और वनोपज पर आधारित थी।
वनोपज से ही वे अपना जीवनयापन करते थे। दीवान बैजनाथ पंडा की नीतियों से वनवासी अपनी आवश्यकता की छोटी-छोटी वस्तुओं के लिए भी तरसने लगे.
जंगल से दातौन और पत्तियाँ तक तोड़ने के लिए भी उन्हें सरकारी अनुमति लेनी पड़ती. आदिवासियों से बेगार भी ली जा रहा थी.
शराब ठेकेदार लोगों का शोषण करते थे.
जनता में असंतोष पनपने लगा. राजा के चाचा लाल कालेन्द्र सिंह और राजा की सौतेली माँ सुवर्ण कुँवर जनता में बहुत लोकप्रिय थे.
Veer Gundadhur (वीर गुण्डाधूर) का आजादी में योगदान
सन् 1910 ई. में जब बस्तर का संघर्ष हुआ, तब गुण्डाधूर की उम्र लगभग 35 वर्ष थी.
इस विद्रोह को स्थानीय बोली में ‘भूमकाल’ कहा गया.
इसका संदेश आम की टहनियों में मिर्च बाँधकर गाँव-गाँव में भेजा जाता था.
स्थानीय लोग इसे ‘डारामिरी’ कहते और बड़े उत्साह से उसका स्वागत करते. अल्प समय में ही हजारों लोग ‘भूमकाल आंदोलन’ से जुड़ गए.
उनकी योजना में अंग्रेजों के संचार साधनों को नष्ट करना, सड़कों पर बाधाएँ खड़ी करना, थानों एवं अन्य सरकारी कार्यालयों को लूटना और उनमें आग लगाना शामिल था.
अंग्रेज सरकार ने इस विद्रोह को कुचलने के लिए मेजर गेयर और डी बेरट को 500 सशस्त्र सैनिकों के साथ बस्तर भेजा.
गुण्डाधूर ने मूरतसिंह बख्शी, बालाप्रसाद नाजिर, वीरसिंह बंदार, सुवर्ण कुँवर तथा लाल कालेन्द्र सिंह के सहयोग से विद्रोह संचालन किया.
आधुनिक हथियारों से लैस अंग्रेज सैनिकों का इन वनवासियों ने अपने डण्डा, भाला, तीर, तलवार और फरसा से जमकर मुकाबला किया.
सैकड़ों क्रांतिकारी तथा अंग्रेज सैनिक मारे गए.
मई सन् 1910 ई. तक यह विद्रोह अंग्रेजों द्वारा क्रूरतापूर्वक कुचल दिया गया.
उत्तर से दक्षिण 136 किलोमीटर और पूर्व से पश्चिम 95 किलोमीटर का बस्तर क्षेत्र इस उथल-पुथल से प्रभावित था.
गुण्डाधूर (Veer Gundadhur) ने पुनः अपने सहयोगियों को एकत्रित कर अलनार में अंग्रेजों से मुकाबला किया.
सोनू माँझी नामक एक लालची व्यक्ति के विश्वासघात करने पर उनके कई साथी मारे तथा पकड़े बाद में उन्हें फाँसी दे दी गई.
गुण्डाधूर किसी तरह से बच निकले.
अंग्रेजों ने बस्तर का चप्पा-चप्पा छान मारा, लेकिन अंत तक गुण्डाधूर का पता नहीं लगा सके.
जनश्रुतियों तथा गीतों में गुण्डाधूर की वीरता का वर्णन है.
Veer Gundadhur (वीर गुण्डाधूर) द्वारा आंदोलन
वे सन् 1910 ई. के आदिवासी विद्रोह के सूत्रधार थे.
वे धुरवा जनजाति के थे. सन् 1909-10 ई. में बस्तर में राजा रुद्रप्रताप देव राज करते थे.
दिनांक 2 फरवरी सन् 1910 ई. को इस ऐतिहासिक ‘भूमकाल’ की शुरुआत हुई.
भूमकाल देखते ही देखते यह पूरे बस्तर में फैल गया.
सन् 1909 ई. में बस्तर की जनता ने इनके साथ मिलकर इंद्रावती नदी के तट पर एक विशाल सम्मेलन आयोजित किया.
हाथों में धनुष, बाण और फरसा लिए हजारों लोग इसमें शामिल हुए.
इस सम्मेलन में सबने यह संकल्प लिया कि वे दीवान और अंग्रेजों के दमन व अत्याचार के विरुध्द संघर्ष करेंगे.
युवक गुण्डाधूर को नेता चुना गया. गुण्डाधूर का असली नाम सोमारू था.
अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति परिचय
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